परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 188
निराकुलता जिनका वाना ।
जिन्हें कम ही बाहर आना ।।
चाँद वे शरद पूर्ण मासी ।
करें शुद्धात्म निलय वासी ।। स्थापना।।
नीर ले आये हाथों में ।
पीर ला दे, जल आँखों में ।।
मिरे भगवन् विद्या सागर |
पीर दो विहँसा करुणा कर ।। जलं ।।
लिये वावन चन्दन आया ।
मिरे सावन छीने माया ।।
मिरे भगवन् विद्या सागर |
खबर लो माया करुणाकर || चंदनं ।।
भर लिये थाल धान शाली |
घर किये सी संध्या लाली ।।
मिरे भगवन् विद्या सागर ।
सुबह लाली दो करुणाकर ।। अक्षतम् ।।
पुष्प की लिये पिटारी हम ।
कहाँ कम दे दुश्वारी गम ।।
मिरे भगवन् विद्या सागर ।
सितम गम हर लो करुणाकर ।। पुष्पं ।।
सरस रच व्यञ्जन घृत लाये ।
क्षुधा रह-रह के तलफाये ।।
मिरे भगवन् विद्या सागर ।
विदा कर दो क्षुध् करुणाकर ।। नैवेद्यं ।।
दीव की ले आये माला ।
परेशाँ करे मोह-हाला ।।
मिरे भगवन् विद्या सागर ।
मोह दो विखरा करुणाकर ।। दीपं ।।
धूप सुरभित लाये न्यारी ।
लोभ छीने पद अविकारी ।।
मिरे भगवन् विद्या सागर ।
क्षोभ दो विनशा करुणाकर ।। धूपं ।।
शोध फल भाँत-भाँत लाये ।
क्रोध आ बात बात जाये ।।
मिरे भगवन् विद्या सागर |
बोध दो प्रकटा करुणाकर ।। फलं ।।
दरब वसु विध लाये नीकी ।
जिन्दगी करे पाप फीकी ।।
मिरे भगवन् विद्या-सागर |
पाप दो विगला करुणा कर ।। अर्घं।।
==दोहा==
स्वर्ग सुखों की चाह ना,
चाह न शिव-सुख धाम ।
गुरु विद्या निष्काम वे,
सविनय तिन्हें प्रणाम ।।
॥ जयमाला ॥
पाई जिन्होंने, गुरु-देव छाया ।
चलकर किनारा, नजदीक आया ।।
किस बात की अब, करनी फिकर ।
गुरुजी ने ली जो अँगुली पकड़।।
पाई जिन्होंने गुरुदेव छाया ।
चलकर किनारा, नजदीक आया ।।
क्या चीज पाई, क्या चीज खो दी ।
क्या सोचना, हूँ गुरुदेव गोदी ।।
पाई जिन्होंने गुरु देव छाया ।
चलकर किनारा नजदीक आया ।।
रख जो दिया है, हाथ बागवाँ ने ।
अपना लिया बेशक आशमाँ ने ।।
पाई जिन्होंने गुरु देव छाया ।
चलकर किनारा ,नजदीक आया ।।
बनते ही शिल्पी के वो देखो साथी ।
आती कहाँ अब दुखियों में माटी ।।
पाई जिन्होंने गुरु देव छाया ।
चलकर किनारा नजदीक आया ।।
दुखता हुआ भी दुखता न माथा ।
तर प्यार माँ हाथ सर पे क्या आता ।।
पाई जिन्होंने गुरु देव छाया ।
चलकर किनारा नजदीक आया ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
सारथि सन्त समाज ।
सन्मृत्यु मेरी करा,
राख लीजियो लाज ।।
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