परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 151
वर्तमान ।
वर्धमान ।।
गुनि भव्या ।
मुनि विद्या।।स्थापना।।
सु-धार जल ।
सुधार कल ।।
हित दस्तक ।
नत मस्तक।।जलं।।
युत चन्दन ।
गत क्रन्दन ।।
हित दस्तक ।
नत मस्तक।।चन्दनं।।
युत अक्षत ।
पद अक्षत ।।
हित दस्तक ।
नत मस्तक।।अक्षतम्।।
सयुत सुमन ।
यति सम-मन ।।
हित दस्तक ।
नत मस्तक।। पुष्पं।।
वर व्यंजन ।
स्वर व्यंजन |।
हित दस्तक ।
नत मस्तक ।।नैवेद्यं ।।
युत दीवा ।
सुत ‘धी-ध्यां’ ।।
हित दस्तक ।
नत मस्तक।।दीपं।।
युत धूपम् ।
ऋत अनुपम ।।
हित दस्तक ।
नत मस्तक।।धूपं ।।
संयुत फल ।
पद अविचल ।।
हित दस्तक ।
नत मस्तक।।फलं ।।
सयुत अरघ ।
मुकति सुरग ।।
हित दस्तक ।
नत मस्तक।।अर्घं ।।
दोहा
गुरुवर के आशीष से,
खो रातरि हो प्रात ।
गुण कीर्तिन-गुरुदेव का,
करें चलो मिल साथ ||
॥ जयमाला ॥
विद्यासागर मुकत सारथी ।
जानें कला त्रिजगत पार की ।।
क्या निगोद का कहें फसाना ।
हुआ श्वास में आना जाना ॥
पाना त्रस-पन ऋतु-बहार सी ।
विद्या सागर मुकत सारथी ।।
कृमि पिपीलिका भ्रमर कहानी ।
कहनी क्या ? न किसने जानी ॥
काया तब भू-फकत भार थी ।
विद्या सागर मुकत सारथी ।।
तनिक पुण्य फिर पल्ले आया ।
वचन तन मगर मन नहीं पाया ॥
पुनः आ गई हँसत हार थी ।
विद्या सागर मुकत सारथी ।।
पशु गति की क्या कथा बतानी ।
सिन्धु बिन्दु विद् कितना पानी ॥
हाय ! जिन्दगी दुखद द्वार थी ।
विद्या सागर मुकत सारथी ।।
वपन बीज ज्यों, त्यों तरु होगा ।
पापों का फल नरकन भोगा ॥
वहाँ रुदन वन सी पुकार थी ।
विद्या सागर मुकत सारथी ।।
फला पुण्य सुर पदवी पाई ।
पर यह क्या माला मुरझाई ॥
दीवाली दिन फकत चार थी ।
विद्या सागर मुकत सारथी ।।
मुश्किल से नर भव कर आया ।
न्याय काक तालिय फिर पाया ॥
राह दो चला, निर्विकार की ।
विद्या सागर मुकत सारथी ।।
फिर क्या फिर तो मनी दिवाली ।
खाली झोली भरी सवाली ॥
बलिहारी गुरु परुपकार की ।
विद्यासागर मुकत सारथी ।।
जानें कला त्रिजगत पार की ।
विद्यासागर मुकत सारथी ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा
यही विनय अनुनय यहीं,
सविनय निशि अरु दीस ।
बालक हूँ रखिये बना,
सदा छाँव आशीष ॥
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