परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 10
साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।स्थापना।।
आओ, लाओ जल गागर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।जलं।।
लाओ चन्दन मलयागर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।चन्दनं।।
धाँ शालि अखण्डित पातर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।अक्षतं।।
वन नन्दन पुष्प सजाकर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।पुष्पं।।
घृत छप्पन भोग बनाकर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।नेवैद्यं।।
अनबुझ दीपिका जगाकर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।दीप॑।।
दश-गंध-दिव्य दिव-लाकर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।धूपं।।
भेले श्री-फल, गुण-गाकर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।फल॑।।
सब आठों द्रव्य मिलाकर ।
गुरु चरण चढ़ाओ सादर ।।
दुखहारी विद्या सागर ।
सुखकारी विद्या सागर ।।
अपहारी करनी भरनी ।
उपकारी, तट वैतरणी ।।
वचनों में मिसरी घोलो ।।
‘रे साध मौन जब खोलो ।
विद्या सागर, विद्या सागर, विद्या सागर बोलो ।।
।।अर्घं।।
दोहा –
पिता मलप्पा आपके,
मातु-सिरी श्री मन्त ।
जन्म शारदी पूर्णिमा,
नुति गुरु विद्या सिन्ध ।।
जयमाला
विद्याधर, विद्याधर, विद्याधर ।
गुरुकुल कुन्द-कुन्द, आ पहुँचे छोड़ घर ।।
छोड़ी श्री मन्ति माता ।
बचपन से जिनसे नाता ।।
पिता श्री मल्लप्पा, उनको छोड़ कर ।
गुरुकुल कुन्द-कुन्द, आ पहुँचे छोड़ घर ।।
विद्याधर, विद्याधर, विद्याधर ।
गुरुकुल कुन्द-कुन्द, आ पहुँचे छोड़ घर ।।
दुकाँ, मकाँ, खेती-बाड़ी ।
धन-पैसा, मोटर-गाडी ।।
दिवा सुपन से, इनसे मुखड़ा मोड़ कर ।
गुरुकुल कुन्द-कुन्द, आ पहुँचे छोड़ घर ।।
विद्याधर, विद्याधर, विद्याधर ।
गुरुकुल कुन्द-कुन्द, आ पहुँचे छोड़ घर ।।
पकड़ निराकुल-सुख रस्ता ।
चल काँटों पर आहिस्ता ।।
इक अपूर्व वैराग दुशाला ओड़ कर ।
गुरुकुल कुन्द-कुन्द, आ पहुँचे छोड़ घर ।।
विद्याधर, विद्याधर, विद्याधर ।
गुरुकुल कुन्द-कुन्द, आ पहुँचे छोड़ घर ।।
दोहा –
समय सार की जे सुधा,
योग सार के सार ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें,
नमन अनंतों बार ।
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