वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
समर्पण गीत
शान्ति शान्ति ॐ, शान्ति-धारा ।
कह गुरुवर ने जिसे पुकारा ।।
काम-धेन भू स्वर्ग नजारे ।
जितनें देव समाये सारे ।।
गाय पूँछ वैतरणी तारे ।
गोधन हमें प्राण से प्यारा ।।
गर्म उबलता पानी डालें ।
बूचड़ खाने खाल उतारें ।।
जीते जी माँ गैय्या मारें ।
क्या न कोई कर्त्तव्य हमारा ।।
लख पीड़ा गो दृग् हों तीते ।
धन ! गो-सेवा पल जो बीते ।।
आ इक भव गुरु खातिर जीते ।
साँचा इक गुरुवर का द्वारा ।।
बन पीछे की हवा धकाना ।
हमको उसमें पंख लगाना ।।
उसे आसमाँ तक पहुँचाना ।
यही मात्र संकल्प हमारा ।।
राम राज्य फिर लाना हमको ।
गोकुल नहीं भुलाना हमको ॥
गुरु का कर्ज चुकाना हमको ।
यही मात्र संकल्प हमारा ।।
एक एक कर टूटे लकड़ी ।
कोई तोड़ सके ना गठरी ।।
बाँध सभी लो अंगुलीं बिखरीं ।
यही मात्र संकल्प हमारा ।।
गुरु ने समझा काबिल हमको ।
तभी भिंजाया गोकुल हमको ।।
जी न चुराना बिलकुल हमको ।
यही मात्र संकल्प हमारा ।।
कह गुरुवर ने जिसे पुकारा ।
शान्ति शान्ति ॐ, शान्ति-धारा ।
कह गुरुवर ने जिसे पुकारा ।।
पूजन
हाई-को ?
गुरु जी कहो या करुणा ।
अन्तर रत्ती भर ना ।।
पर्दे से नहिं पौछा करती,
हाथ कभी भी गौ माता ।
आड़े समय न छोड़ा करती,
साथ कभी भी गौ माता ।।
किस मुँह कह पायेंगे भूली,
अरे ! भले कर ले संध्या,
आते आते करे न हरगिज,
रात कभी भी गौ माता ।।1।।
नहीं पलटती पेज लगाकर,
थूक कभी भी गौ माता ।
नहीं बुझाती दीप श्वास निज,
फूँक कभी भी गौ माता ।।
ओ ! नागिन माता सुन ले,
जठरानल चाहे भस्म करे,
टुकड़े जिगर मिटा, न मिटाती,
भूख कभी भी गौ माता ।।2।।
बारिश में न करें तरबतर,
नैन कभी भी गौ माता ।
कहे दिल दुखाने वाले नहिं,
वैन कभी भी गौ माता ।।
चैन गवा देती हित औरन,
फौरन लुट पिट मिट जाती
पे न स्वयं के लिये दिखी,
बेचैन कभी भी गौ माता ।।3।।
नहीं गिराती खाने चुगली,
लार कभी भी गौ माता ।
करे न हरगिज लक्ष्मण रेखा,
पार कभी भी गौ माता ।।
बाट न जोहे बड़े काम की,
करते छोटे काम चले,
है इतिहास गवाह बनी ना,
भार कभी भी गौ माता ।।4।। ।।स्थापना।।
टाँग खींचने का नहीं करती,
काम कभी भी गौ माता ।
करे काम दिन रात न चाहे,
नाम कभी भी गौ माता ।।
फलाँ-फलाँ मैं नाम कहाँ,
मैं रहा आत्मा राम अहा,
सोच यही विसराये शाम न,
राम कभी भी गौ माता ।।5।।
कॉलर उठा गुमान ‘मान’ न,
चखे कभी भी गौ माता ।
मुँह न दूसरों का आशा से,
तके कभी भी गौ माता ।।
भली तरह जाने लुप-छुप जो,
किये काम वे शल्य बनें,
ले माफी, सर पाप बोझ नहीं,
रखे कभी भी गौ माता ।।6।।
नहीं किसी के करे उजागर,
राज कभी भी गौ माता ।
कल की चिंता में खोती नहिं,
आज कभी भी गौ माता ।।
चूनर चाँद सितारे टकती,
टकराती है गली गली,
बन कर गिरी न घर औरों के,
गाज कभी भी गौ माता ।।7।।
बिन पूछे नहिं पत्र किसी का,
पढ़े कभी भी गौ माता ।
नोंचे, रखे न नाखूँ इतने,
बड़े कभी भी गौ माता ।।
जाने मटकी पाप डूबती,
आप आप जब भर चलती,
मनमाने को अपनी बात न,
अड़े कभी भी गौ माता ।।8।।।जलं।।
फिरे उड़ाती छल्ले नहिं,
सिगरेट कभी भी गौ माता ।
भरी न ले जाये करीब गुरु,
स्लेट कभी भी गौ माता ।।
अपना जो देने को वो भी,
खड़ी सहर्ष कमर बाँधे,
नहीं किसी का काटा करती,
पेट कभी भी गौ माता ।।9।।
धरती धरी रहे, न नभ में,
उड़े कभी भी गौ माता ।
गलती अपनी सिर औरन नहिं,
मडे़ कभी भी गौ माता ।।
जितना भी बन सके खामियाँ,
ढ़के दूसरों की भरसक,
खोद रखे मुर्दे निकाल न,
गड़े कभी भी गौ माता ।।10।।
लटकी रहे न नलिनी पे बन,
कीर कभी भी गौ माता ।
छोड़े वचनों के विष बुझे न,
तीर कभी भी गौ माता ।।
रखे ज्ञान औषध का भी जो,
अलसुबहो वन राह धरे,
ढ़के न कान, सके नहिं सुन भी,
पीर कभी भी गौ माता ।।11।।
करे नहीं नीलाम किसी की,
साख कभी भी गौ माता ।।
करें नहीं अरमान किसी का,
राख कभी भी गौ माता ।
बारिश का सिर झुका करे,
अभिवादन खूब फबे देखो,
बात बड़ों से करती मिला न,
आँख कभी भी गौ माता ।।12।।।चन्दनं।।
रहे न करने में मजाक,
मशगूल कभी भी गौ माता ।
पुनि पुनि करे न वही दुबारा,
भूल कभी भी गौ माता ।।
ले अंगार न और जलाने,
जाने जलें, स्वयं पहले,
ढ़कने चाँद न फेंका करती,
धूल कभी भी गौ माता ।।13।।
जीभ कटे क्यों ? जीमे करे न,
बात कभी भी गौ माता ।
जीभ चिढ़ाये नहीं दिखाये,
दाँत कभी भी गौ माता ।।
अपना दिखा, ‘कि चारों खाने,
चित हो चाली पहले ही,
जीत न चाहे, क्यों खायेगी,
मात कभी भी गौ माता ।।14।।
मारे चोंच न लख प्रतिद्वंदी,
काँच कभी भी गौ माता ।
बन मदारी न फिरे नचाती,
नाँच कभी भी गौ माता ।।
शक्ति नहीं फिर भी भिड़ जाती,
शेर दरिन्दों से जाके,
टुकड़े जिगर न आने देती,
आँच कभी भी गौ माता ।।15।।
करे न बातचीत अपनों से,
बन्द कभी भी गौ माता ।
छिन न गवाती लेन देन,
आनन्द कभी भी गौ माता ।।
भरसक भर पायेगी जितने,
रंग भरे धरती नभ में,
भरे फिजा में नहीं विषैली,
गंध कभी भी गौ माता ।।16। ।।अक्षतं।।
कतरा करे न दाँतो से,
नाखून कभी भी गौ माता ।
करे न सुनो भावनाओं का,
खून कभी भी गौ माता ।।
पाटी बाँधे भले आँख पै,
रखे हाथ लम्बे-लम्बे,
लेती अपने हाथ नहीं,
कानून कभी भी गौ माता ।।17।।
नील झील दृग् करे नहीं,
रक्ताभ कभी भी गौ माता ।
बने न दे रहने ख्वाबों को,
ख्वाब कभी भी गौ माता ।।
जाने दैव देख ले कब हा !
हा ! हा ! तिरछी नजरों से,
सो न उठाये मजबूरी का,
लाभ कभी भी गौ माता ।।18।।
लील न जाये अपने को बन,
मीन कभी भी गौ माता ।
बने न किसी समक्ष झुका दृग्,
दीन कभी भी गौ माता ।।
कौन कहाँ से चला आ रहा ?
जाना कहा ? विचारे बिन,
करे व्यतीत न संध्या अपनी,
तीन कभी भी गौ माता ।।19।।
रखे नहीं आकाश कुसुम,
अभिलाष कभी भी गौ माता ।
बनी फिरे नहिं चलती फिरती,
लाश कभी भी गौ माता ।।
रहे न इतनी दूर आ सके,
पास, के जा फिर दूर सके,
आती इतनी नहीं किसी के,
पास कभी भी गौ माता ।।20।।।पुष्पं।।
बात बात में पकड़ा करे न,
तूल कभी भी गौ माता ।
नहीं किसी से बोले उल-
जलूल कभी भी गौ माता ।।
लिये खड़े सब ‘टोकन’ टोक न,
कहे रखूँ किस मुख पारा,
भूल बताने की सो करे न,
भूल कभी भी गौ माता ।।21।।
नहीं किसी को दिया करे,
बद्दुआ कभी भी गौ माता ।
मन बहलाने भी न खेले,
जुआ कभी भी गौ माता ।।
खूब जानती चिनते जो,
दीवार बढ़े जाते पग-पग,
जाने नीचे और, न खोदे,
कुआ कभी भी गौ माता ।।22।।
करे किसी से तू कहकर नहिं,
बात कभी भी गौ माता ।
छतरी खोले, रोके नहिं,
बरसात कभी भी गौ माता ।।
जाने खूब छोड़ मैदां,
बुजदिल ही भागा करते हैं,
लडे़ वीर बन करे नहीं,
अपघात कभी भी गौ माता ।।23।।
नदी पिये न नीर, पिये न
क्षीर कभी भी गौ माता ।
उलझन न दे बनने टेढ़ी,
खीर कभी भी गौ माता ।।
खुला जिसे मिल गया पींजरा,
जा अरमाँ-आसमाँ छुआ,
पड़ी न पैर किसी के बन,
जंजीर कभी भी गौ माता ।।24।।।नैवेद्यं।।
पड़ जाती बन स्वर्ण, न कोसे,
पंक कभी भी गौ माता ।
बना न रखे अधी-नस्थों को,
रंक कभी भी गौ माता ।।
वैकल्पिक कर प्रश्न सभी हल,
कहे जाँच कोई भी लो,
लिये न आती आर-पार के,
अंक कभी भी गौ माता ।।25।।
सुने बात दीवार लगा न,
कान कभी भी गौ माता ।
जोखिम में डाले न हरगिज,
जान कभी भी गौ माता ।।
गणना करते समय स्वयं से,
ही है कर शुरुआत रही,
पलक न भूल रही अपनी
पहचान कभी भी गौ माता ।।26।।
पड़ी हाथ हथकड़ी, गई न,
जेल कभी भी गौ माता ।
करे सितार न दूज चाँद का,
मेल कभी भी गौ माता ।।
फूल, पत्तियाँ नहीं तोड़ती,
यूँ ही नहिं खोदे माटी,
करती फिरे न हवा पानी का,
खेल कभी भी गौ माता ।।27।।
खे पतवार लिये, न सलंगर,
नाव कभी भी गौ माता ।
अपने नहीं दिखाती सबको,
घाव कभी भी गौ माता ।।
धक्के खाने मिलें और क्या,
पीने घूँट अश्रु रह-रह,
जाती तभी न शहर, छोड़ के,
गाँव कभी भी गौ माता ।।28।। ।।दीपं।।
नहीं निराशा के मेघों से,
घिरे कभी भी गौ माता ।
टोपी इस सिर उस नहिं करती,
फिरे कभी भी गौ माता ।।
गिरती तो बन बीज भाँति भू,
गुण क्रम से बढ़ सकने को,
अपनी ही नजरों से हन्त ! न,
गिरे कभी भी गौ माता ।।29।।
छोड़ सलीका रही नहीं पल,
पलक कभी भी गौ माता ।
भूले नहीं मिलाना संध्या,
सिलक कभी भी गौ माता ।।
जाने खूब लगी ही रहती,
भूख प्रशंसा की सबको,
भूले माथ न सुमन लगाना,
तिलक कभी भी गौ माता ।।30।।
बात यहाँ की किया करे न,
वहाँ कभी भी गौ माता ।
सिर न भाँत गज धूल उड़ेले,
नहा कभी भी गौ माता ।।
जाने खूब पाप का होता किस,
किस रीत्या बंध हहा !
पकड़े कान न कहे पाप कर,
अहा, कभी भी गौ माता ।।31।।
मुश्किल देख न झाँपे शश से,
नैन कभी भी गौ माता ।
चाँदी समझ उठाती नहिं मुख,
फेन कभी भी गौ माता ।।
भूल रही न ओम तिव्वती ‘हुम’,
मुस्लिम ‘आमीन’ जिसे,
कहते भाई ईसाई,
‘आमेन’ कभी भी गौ माता ।।32।। ।।धूपं।।
मोड़े नदी भाँति बढ़ गये न,
कदम कभी भी गौ माता ।
बात बात में खाती दिखे न,
कसम कभी भी गौ माता ।।
सिर्फ न सुना, गुना भी, शक है,
लाइलाज इक बीमारी,
पाले पोसे सो न सही भी,
बहम कभी भी गौ माता ।।33।।
चुभने वाला रखे नहीं,
अंदाज कभी भी गौ माता ।
चुभने वाले चुने नहीं,
अल्फ़ाज़ कभी भी गौ माता ।।
प्रतिद्वंद्वी मुख हार दिखाने,
बड़ा तर्क का भार रही,
रखे न चिल्लाने वाली,
आवाज कभी भी गौ माता ।।34।।
हटे निभाने में नहिं पीछे,
फर्ज कभी भी गौ माता ।
हटे चुकाने में नहिं पीछे,
कर्ज कभी भी गौ माता ।।
पढ़ी दूसरे विद्यालय की,
जो दूजी ही कक्षा में,
हटे मिटाने में नहिं पीछे,
मर्ज कभी भी गौ माता ।।35।।
करे न पातर जीमें जिस तिस,
छेद कभी भी गौ माता ।
काल भटोसे बचा रही नहिं,
श्वेद कभी भी गौ माता ।।
यूँ ही दीन दयाल प्रभो ने,
दिया न पेट बड़ा इतना,
बने पचाती, नहीं उगलती,
भेद कभी भी गौ माता ।।36।। ।।फलं।।
सीधा करे न उल्लू सीमा,
लाँघ कभी भी गौ माता ।
उसे न दे जो बनकर सोया,
बाँग कभी भी गौ माता ।।
रहमत जो बरसाई उसने,
कर सहर्ष स्वीकार रही,
लख याचक को लघुतर, रखे न,
माँग कभी भी गौ माता ।।37।।
इत-उत आ जा करे न जाया,
वक्त कभी भी गौ माता ।
करे न अपनी कूख रक्त,
आरक्त कभी भी गौ माता ।।
गम खाती, पी जाती गुस्सा,
पल पल चाह रही जीना,
मरने से पहले नहिं बनती,
सख्त कभी भी गौ माता ।।38।।
काँटे घड़ी न पलट घुमाती,
मिली कभी भी गौ माता ।
छीन दूसरों की रंगत नहिं,
खिली कभी भी गौ माता ।।
जो संकल्प किया आये,
फिर आँधी या तूफान भले,
अंगद का सा पैर तनिक न,
हिली कभी भी गौ माता ।।39।।
नाम किसी का करे नहीं,
बदनाम कभी भी गौ माता ।
टकराती नहिं सखे ! जाम से,
जाम कभी भी गौ माता ।।
जब-तब मिले छाँव करती सिर,
इस उस किससे अनजाना,
घाम न करती, करे न दिन,
आराम कभी भी गौ माता ।।40।।
=दोहा=
जयतु जयतु जय मात गो,
‘माँ…गो’ जय जयकार ।
सहज निरा’कुल बन सकूँ,
लग पाऊँ भव पार ।।अर्घ्यं।।
।।जयमाला।।
हवा पश्चिमी जाँ लेवा
कौन करेगा गो-सेवा
आ संकल्प उठाते हम
हम करेंगे
हम करेंगे
हम करेंगे
बूढ़ी हो चाली है जो
उसे कत्ल-खाने भेजो
पट्टी पढ़ा रहा है को
अप्प दीव प्रकटाते हम
पेट काट निज बछड़े का
गैर-भाग्य खींची रेखा
हमने किन्तु सार्थ देखा
चश्मा नाक हटाते हम
घास और क्या खाती है
मीठा दूध पिलाती है
तभी कृष्ण को भाती है
गोकुल विश्व बनाते हम
आ बूचड़-खाने देखो
मरती तड़फ-तड़फ के गो
दोगे क्या जवाब उसको
बन कर अमर न आते हम
गुरु भक्तों में आते हम
आ संकल्प उठाते हम
हवा पश्चिमी जाँ लेवा
कौन करेगा गो-सेवा
हम करेंगे
हम करेंगे
हम करेंगे ।
गुरु जी हमारे
प्राणों से प्यारे
उनके नक्से कदम पे बढ़ते जाना है
कभी,
भूल से भी,
उनका दिल न दुखाना है
दुनिया से न्यारे,
प्राणों से प्यारे
गुरु जी हमारे
प्राणों से प्यारे
उनके नक्से कदम पे बढ़ते जाना है
हैं देखने जो, भगवान् को
ये और वो दोनों ही जहां,
गुरु जी के रूप में,
भगवान् ही तो उतरते है यहाँ,
टकने चूनर चाँद-सितारे,
‘रे सहजो-सुलभ कहाँ जन्नत नजारे,
जब ढ़ेर जन्मों का
न ऐसा वैसा,
पुण्य सातिशय जुड़ता है,
सानिध्य गुरु जी का,
तब कहीं जाके,
थोड़ा बहुत मिलता है
गुरु जी हमारे
प्राणों से प्यारे
उनके नक्से कदम पे बढ़ते जाना है
।।जयमाला पूर्णार्घ्यं।।
प्रथम सम्यक् ज्ञान वलय
(१)
हाई-को ?
तलक आज न डूबी,
गुरु भक्तों की पुनडुबी
तुम्हें प्रणाम,
दृग् जल चढ़ाते ही, हाथ मुकाम ।
चन्दन चढ़ाते ही, था बना काम ।
अक्षत चढ़ाते ही, होड़ विराम ।
‘कि पुष्प चढ़ाते ही, ‘काम’ तमाम
नैवेद्य चढ़ाते ही, क्षुध् इंतक़ाम ।
घी दीप चढ़ाते ही, निधि निर्दाम ।
‘कि धूप चढ़ाते ही, अनूप शाम ।
श्रीफल चढ़ाते ही, भू-अष्टम् नाम ।
अरघ चढ़ाते ही, नौ शिव धाम ।।अर्घ्यं।।
(२)
हाई-को ?
दिखाते ‘जहां-से’ न स्वप्न झूठे ।
हो तुम अनूठे ।।
अपना नीर कटोरी ।
भव पीर मोरी, मेंट दो, देना गाँठ डोरी ।
सुगंध घोरी, अपना शाली-धाँ ढ़ेरी ।
भव-भव फेरी, मेंट दो, भोग प्रीत मेरी ।
पुष्पों की ढ़ेरी, अपना चरु घी-बोरी ।
क्षुधा व्याधि मोरी, मेंट दो, निशि हा ! अंधेरी ।
संज्योत मेरी, अपना धूप बेजोड़ी ।
यह तोरी-मोरी, मेंट दो, दूरी दिवि-भेरी ।
श्रीफल ढ़ेरी, अपना ये द्रव्य पूरी ।
मेंट दो, शिव-द्यु से दूरी ।।अर्घ्यं।।
=महा अर्घ्य=
गोरी हो या काली हो ।
तुम्हें प्राण से प्यारी गो ।।
खेवैय्या गैय्या-नैय्या |
हैं चाहें हम सब छैय्या ।
गायें भी सँग आईं हैं।
कलशें जल सँग लाई हैं ।।
चन्दन घट सँग लाई हैं ।।
कण-अक्षत सँग लाई हैं ।।
चुन प्रसून सँग लाई हैं ।।
स्रज नेवज सँग लाई हैं ।।
घृत-प्रदीप सँग लाई हैं ।।
धूप-नूप सँग लाई हैं ।।
फल-जल-थल सँग लाई हैं ।।
थाल-दरब सँग लाई हैं ।।
खेवैय्या गैय्या-नैय्या,
हैं चाहें हम सब छैय्या
==दोहा==
सुन, पुकार ली आपने,
गायों की गुरुदेव ।
मेरी भी भर दीजिये,
गुण-सम्पद-जिन जेब ।।अर्घ्यं।।
द्वितीय सम्यक् ज्ञान वलय
(१)
ओ ! ‘जि ओ ! सुन लो,
‘अपने-भक्तों में’
हमें चुन लो ।
भेंटूॅं मैं,जल तुम्हें,
मुऊँ, फिर के न लजाऊँ मैं ।
भेंटूॅं चन्दन तुम्हें,
सापों को भी न ठुकराऊँ मैं ।
भेंटूॅं अक्षत तुम्हें,
माँ अब और न रुलाऊँ मैं ।
भेंटूॅं मैं पुष्प तुम्हें,
गहल-श्वान ‘कि छकाऊँ मैं ।
भेंटूॅं नैवैद्य तुम्हें,
बेल कोल्हू सा न ठगाऊँ मैं ।
भेंटूॅं मैं दीप तुम्हें,
पढ़ जुगाली मन लाऊँ मैं ।
भेंटूॅं मैं धूप तुम्हें,
कर्म पाश ‘कि विघटाऊँ मैं ।
भेंटूॅं मैं फल तुम्हें,
मुक्ति राधिका ‘कि रिझाऊँ मैं ।
भेंटूॅं मैं अर्घ तुम्हें,
पद-अनर्घ ‘कि पा जाऊँ मैं ।।अर्घ्यं।।
(२)
हाई-को ?
न उतरने पाता ।
‘रंग-श्री-गुरु’ जो चढ़ जाता ।।
भेंटूॅं दृग् जल मैं,
आया जो बिगड़ी बनाना तुम्हें ।
आया जो आँसू पोंछना तुम्हें ।
आया जो कृपा वर्षाना तुम्हें ।
आया जो सुमन चुनना तुम्हें ।
आया जो दर्द-बाँटना तुम्हें ।
आया जो आसमां भिजाना तुम्हें ।
आया जो चेहरा पढ़ना तुम्हें ।
आया जो रास्ता बताना तुम्हें ।।फलं।।
भेंटूॅं जल-फल मैं,
आया जो दुखड़ा सुनना तुम्हें ।।अर्घ्यं।।
(३)
हाई-को ?
फँस जाते हैं ।
गुरु जी गुस्से में ही हँस जाते हैं ।।
आंखों में झिर जल लाये ।
हेरा-फेरी जो, वो विहँसाने आये ।
थारी-मारी जो, वो विनशाने आये ।
छीटा-कसी जो, वो भुलाने आये ।
ताँका-झाँकी जो, वो विसराने आये ।
तू-तू मैं-मैं जो, वो मिटाने आये,
टोका-टाँकी जो, वो सिराने आये,
काना-फूँसी जो, वो विखराने आये,
जोड़-तोड़ जो, वो विथलाने आये,
आपा-धापी जो, वो विघटाने आये,
हाथों में जल-फल लाये ।।अर्घ्यं।।
(४)
हाई-को ?
कहीं और न सुरग ।
छोड़ के श्री गुरु के पग ।।
आंखों में झिर जल लाया ।
जन्म, यम घर करने आया ।
भवाताप अपहरने आया,
पद अछत ‘कर’ करने आया
मद-मदन गुम करने आया,
वेदन क्षुध विहरने आया,
तम विमोह विनशने आया,
कर्माष्टक दग्ध करने आया,
फल विमुक्ति चखने आया,
लेख अनर्घ लिखने आया,
हाथों में जल-फल लाया ।।अर्घ्यं।।
=महा अर्घ्य=
गो शाला अहो-भाग ! ग्वाला ।
उठकर इनका सम्मान करें ।
गो इन्हें देख मुस्कान भरें ।।
गो से गहरा इनका नाता ।
गो वत्स सनेह इन्हें भाता ।।
अचरज है सारी दुनिया को ।
दी बदल इन्होंने दुनिया गो ।।
अजि कम ये कहाँ करिश्मा है ।
छू गायें रही आसमाँ है ।।
जादू सा किया ‘कि इन्होंने ।
ली साँस चेन की गायों ने ।।
की इनकी संध्यावन विनती ।
‘कि न रोती गो निर्जन मिलती ।।
रोकी जो हिंसा आँधी है ।
गायों की चाँदी चाँदी है ।।
इन्हीं की आशीषी छाया ।
जो सावन गो जीवन आया ।।
नहीं और, हाथ इनका ई-में ।
गो अँगुली आज सभी घी में ।।
इनका ही रहा हाथ सिर पे ।
झुक झूम-झूम जो गो थिरके ।।
मानो दूजे ही गो पाला ।
गो शाला अहो-भाग ग्वाला
==दोहा==
सिद्ध कर दिया मेंट के,
गायों का सन्ताप ।
है जिसका कोई नहीं,
साथी उसके आप ।।अर्घं ।।
तृतीय सम्यक् ज्ञान वलय
(१)
हाई-को ?
छू कृपा-गुरु पवन ।
‘छू-मन्तर’ चिन्ता के घन ।।
पाने आप की एक झलक आये ।
उदक, चन्दन लाये ।
हित आप चरण-वन्दन आये ।
‘कि झोली में पदवी शाश्वत आये ।
अक्षत, सुमन लाये ।
‘कि चित् चारों खाने हो मदन जाये ।
‘कि दावानल रुज-क्षुध् बुझ जाये ।
नेवज, आरती लाये ।
‘कि भीतर अँधेरा मुँह की खाये ।
‘कि किरदार मेरे सुगंध आये ।
सुगंध, श्रीफल लाये ।
जलन जेहन से ‘कि जल जाये ।
‘कि रग-रग रंग-सजग छाये ।
दृग् सजल अरघ लाये ।।अर्घ्यं।।
चरणन रखूँ अरघ ।।अर्घ्यं।।
(२)
हाई-को ?
भर लकीरों में देता रंग ।
श्री श्री सद्-गुरु संग ।।
नीर चढ़ाते, भौ-तीर छकाते ।
भगवन् त्राहि माम्,
गंध चढ़ाते, ये बंध सताते ।
धान चढ़ाते, दुर्-ध्यान हराते ।
भगवन् त्राहि माम् ।
फूल चढ़ाते, ‘भै’ शूल चुभाते ।
भोग चढ़ाते, सं-योग रिझाते ।
भगवन् त्राहि माम् ।
दीप चढ़ाते, हा ! सीप में आते ।
धूप चढ़ाते, वि-द्रूप कहाते ।
भगवन् त्राहि माम् ।
फल्ल चढ़ाते, त्रि-शल्य रुलाते ।
अर्घ चढ़ाते, त्रि-वर्ग भ्रमाते
भगवन् त्राहि माम् ।।अर्घ्यं।।
(३)
हाई-को ?
तरु सरीखा, दानी जीवन किसी का ।
तो ऋषि का ।।
जल चढ़ाऊँ चरणन,
‘कि रीझे सम्यक् दर्शन ।
चर्चूं चन्दन चरणन,
‘कि रीझे स्वानुभवन ।
हेत मरण पण्डित,
भेंटूँ शालि धाँ अखण्डित ।
हेत औसान काम बाण,
चढ़ाऊँ पुष्प विमान ।
भेंटूँ ‘कि चरु थाल,
समाये रोग क्षुध् काल-गाल ।
भिंटाऊँ दीप अगम्य पवमान,
हेतु संज्ञान ।
चढ़ाऊँ धूप दश-गंध,
हेतेक परमानन्द ।
भिंटाऊँ फल ऋत-ऋत,
हितिक सम्यक् चरित ।
आश ले पद अनर्घ,
चरणन चढ़ाऊँ अर्घ ।।अर्घ्यं।।
(४)
हाई-को ?
आनन्द होता अनन्त ।
करते ही वन्दना सन्त ।।
जल चढ़ाऊँ,
चतुष्टय अनन्त कल ‘कि पाऊँ ।
भेंटूँ चन्दन,
अब बर्षा में ‘कि न करूँ रुदन ।
शालि धाँ भेंटूँ,
फैली शाम-शाम ‘कि दुकाँ समेटूँ ।
भेंटूँ पहुप,
पर-निन्दा समय रहूँ ‘कि चुप ।
चरु चढ़ाऊँ,
आये कतार जिस पुरु ‘ऊ’ आऊँ ।
दिया चढ़ाऊँ,
घना अंधेरा जहां दिया ‘कि पाऊँ ।
धूप चढ़ाऊँ,
सर-अन्तर् देख ‘कि स्वरूप पाऊँ ।
भेंटूँ श्रीफल,
खो मेला, हो भेला ‘कि गिरि निकल ।
अर्घ चढ़ाऊँ,
धार भवेक स्वर्ग पवर्ग पाऊँ ।।अर्घ्यं।।
(५)
हाई-को ?
है बड़ी जान ।
बात इसमें ‘कि हैं गुरु भगवान् ।
चन्दन पग पखारे,
दृग् सजल मैं खड़ा द्वारे ।
अंजन नभ बतियाये,
हम भी चन्दन लाये ।
बुलबुल ने ‘पर’ पाये,
हम भी तण्डुल लाये ।
कलकण्ठ ने स्वर पाये,
हम भी द्यु-गुल लाये ।
धनंजय जै-धन पाये,
हम भी व्यंजन लाये ।
कोण्डेश ‘आप’ करीब आये,
हम भी दीव लाये ।
जीव गिंजाई चिद्रूप पाये,
हम भी धूप लाये ।
अग्नि ने सर कमल पाये,
हम भी फल लाये ।
शिव भूति त्रि-वर्ग नशाये,
हम भी अर्घ्य लाये ।।अर्घ्यं।।
(६)
हाई-को ?
न सिर्फ लोच वाली सोच ।
है पास आपके लोच ।।
दृग् सजल मैं ।
कर लो अपने सा वज्र, बल में ।
विघटाने भवा-ताप छिन में ।
लाया चन्दन मैं ।
भेंटूँ तण्डुल मैं ।
आने आपके श्री गुरु-गुल में ।
‘कि आप सा मैं बन सकूँ ।
चरणों में सु-मन रखूँ ।
चरु घी भेंट लाया ।
क्षुधा भागे ‘कि समेंट आया ।
हल्का हूँ रख लो द्यु-शिव पोत में ।
भेंटूँ ज्योत मैं ।
भेंटूँ अगर मैं ।
थकने-रुकने न सफर में ।
लाया श्रीफल मैं ।
कर लो अपने भक्त दल में ।
चरणों में अर्घ रखूँ ।
बस आप का बन सकूँ ।।अर्घ्यं।।
(७)
हाई-को ?
है कोई, दोई जगत्, जगत खेवा ।
तो गुरुदेवा ।।
कृपया कीजे स्वीकार ।
तेरे ही ‘हम’, ले नीर खड़े द्वार ।
दृग् नम, ‘हम’ ले गंध खड़े द्वार ।
अनुपम, ले हम, धाँ खड़े द्वार ।
हम, द्यु-द्रुम, पुष्प ले, खड़े द्वार ।
हम, सश्रम, चरु ले, खड़े द्वार ।
हवा अगम, दीप ले, खड़े द्वार ।
हम, सुरम, धूप ले खड़े द्वार ।
हम, द्यु-द्रुम, फल ले खड़े द्वार ।
दश दो कम, द्रव्य ले खड़े द्वार ।
कृपया कीजे स्वीकार ।।अर्घ्यं।।
(८)
हाई-को ?
जाँ निकले ।
‘श्री गुरु-मुख’ फिर बद्-दुआ निकले ।।
जल-निर्मल लाये ।
बनने आप-मन-से आये ।
खोने आप-सा मिथ्यात्व आये ।
घिस चन्दन लाये ।
सित अक्षत लाये ।
गोने आप-सा स्वानुभौ आये ।
दलने आप-सा ‘मार’ आये ।
चुन-सुमन लाये ।
सुधा-पकवाँ लाये ।
करने आप-सा क्षुध् जै आये ।
बनने आप-सा धी वाँ आये ।
घी का प्रदीवा लाये ।
धूप-अनूप लाये ।
ध्याने आप-सा चिद्रूप आये ।
निराकुलता आप-सी भाये ।
फल-विरल लाये ।
अर-अरघ लाये ।
चलने आप पथ पे आये ।।अर्घ्यं।।
महा अर्घ्य
अब न सोन चिड़िया भारत ।
ओ ! माँ श्री मन्ती लाला ।
पय महँगा सस्ती हाला ।।
पिता मल्लप्पा कुल दीवा ।
अब दर्शन दुर्लभ घी का ।।
ओ ! विख्यात ऊर्ध्वरेता ।
दूध आ गया सपरेटा ।।
बसने वाले ख्वाबों में ।
गो-रस शुद्ध किताबों में ।।
दृग् गुरु-ज्ञान-सिन्धु तारे ।
फिरती गउ मारे-मारे ।।
ग्राम सदलगा गौरव ओ ।
कहीं गया हा ! गो रव खो ।।
ओ ! नौ श्रमण संघ खेवा ।
खाद आ गई जॉं लेवा ।।
जागृत संध्या तीना ओ ।
हक शेम्पू ने छीना गो ।।
ओ ! सुनने वाले विनती ।
खुले कत्ल घर अनगिनती ।।
लेने लोन लगा भारत ।।
अब न सोन चिड़िया भारत ।
ओ ! रखवाले गो शाला ।
रखें लाज, आये ग्वाला ।।
==दोहा ==
अरजी यही अखीर में,
इन गायों के साथ ।
करुणा बरसाते रहें,
भाँति इसी दिन रात ।।अर्घं ।।
=जयमाला=
गो सेवा से बड़ी न सेवा ।
कहें सिन्धु विद्या गुरुदेवा ।।
अपने लिये सभी जीते हैं ।
जिसके पर-हित दृग् तीते हैं ।।
और न दूजा, उसकी पूजा
करें, उतर स्वर्गों से देवा ।।
कहें सिन्धु विद्या गुरुदेवा ।
राम, लखन, मत हनुमत सीता ।
यही कृष्ण श्री भगवत्-गीता ।।
विष्णु महेशा, ब्रह्मुपदेशा ।
उमा, रमा, श्रुति, सरसुति, रेवा ।।
कहें सिन्धु विद्या गुरुदेवा ।।
“या: श्री सा: गो” रख विश्वासा ।
नेक देवता एक निवासा ।।
जय गोशाला, जय गोपाला
काम-धेन, वैतरणी खेवा ।
कहें सिन्धु विद्या गुरुदेवा ।।
गो सेवा से बड़ी न सेवा ।
नमो नमः, नमो नमः
श्री गुरु विद्या नमो नमः
मन्त्र जपो मन,
सन्त शिरोमण, श्री गुरु विद्या नमोः नमः ।।
दया क्षमा बुत ।
श्री मति माँ सुत !
संरक्षक श्रुत ।
रक्षक गोधन,
दक्षिण सौरभ ।
भारत गौरव ।
सत् सुन्दर शिव ।
नमतर लोचन,
पूरण मंशा ।
नूर अहिंसा ।
भू मत-हंसा ।
संकट मोचन,
मन्त्र जपो मन,
सन्त शिरोमण, श्री गुरु विद्या नमोः नमः ।।
नमो नमः, नमो नमः
श्री गुरु विद्या नमो नमः
मन्त्र जपो मन,
सन्त शिरोमण, श्री गुरु विद्या नमोः नमः ।।
।। जयमाला पूर्णार्घ्यं ।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा-
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
=आरती=
महिमा श्री गुरु अपरम्पारा ।
खोली आंख छटा अंधियारा ।।
करें आरती आओ मिल के ।
लिये दीप दूजा ध्रुव तारा ।।
सुख देते प्रभु दुख भी देते ।
सुख देते गुरु दुख हर लेते ।।
गुरु ने जीवन शिष्य संवारा ।
खोली आंख छटा अंधियारा ।।
महिमा श्री गुरु अपरम्पारा ।
करें आरती आओ मिल के ।
लिये दीप दूजा ध्रुव तारा ।।१।।
मणि चिन्ता, गउ-सुर-तरु फीके ।
पड़ें स्वस्ति गुरु शिख क्या दीखे ।।
टक चूनर दें शशि परिवारा ।
गुरु ने जीवन शिष्य संवारा ।
खोली आंख छटा अंधियारा ।।
महिमा श्री गुरु अपरम्पारा ।
करें आरती आओ मिल के ।
लिये दीप दूजा ध्रुव तारा ।।२।।
पौधा नीचे विरख न पनपे ।
कृपा दृष्टि गुरु पड़ी अपन पे ।।
चूर चूर वसु कर्मन कारा ।
गुरु ने जीवन शिष्य संवारा ।
खोली आंख छटा अंधियारा ।।
महिमा श्री गुरु अपरम्पारा ।
करें आरती आओ मिल के ।
लिये दीप दूजा ध्रुव तारा ।।३।।
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