वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हाई-को ?
और द्वीप के लगते तुम,
आँख थारी जो नम ।
लगा भक्तों का मेला
दे बता सन्त ये अलबेला ।।
*पूजन*
बुरी बात नहीं, बुरा वक्त होता है
और वक्त होता उसका,
जो गुरु जी का भक्त होता है
चाँदी हो जाती सोना
मोती झिर भाँति रोना
गुरु की भक्ति में जिसका
लगा चित्त होता है ।
चित भी हो जाती उसकी
पट भी हो साथी उसकी
जिसका मन,
गुरु चरणन आसक्त होता है ।
माँ दही मिसरी उसकी
दुनिया ही बदली उसकी
जिसका गुरु भक्ति में,
जीवन समस्त खोता है ।
उसका वक्त होता है ।।स्थापना।।
उधड़े रिश्ते सी देते ।
न सिर्फ रस्ते ही देते ।
नज़र कर हर खुशी देते ।
सच्ची कुछ नहीं लेते
मुफ्त में गुरु जी,
दे क्या कुछ नहीं देते ।।
भीतरी रोशनी देते ।
पार कर पनडुबी देते ।
निछार जिन्दगी देते ।।
सँभाल आखिरी देते ।
बाँस कर बाँसुरी देते ।
काँच कर आरसी देते ।।जलं।।
‘के आई रोशनी ।
मेरे जीवन में,
हैं छाई हर खुशी ।।
था किये घर अंधकार ।
मेरे जीवन में,
आकर किया बड़ा उपकार ।।
आये क्या तुम ।
मेरे जीवन में,
बन-के हमदम ।
लो हुये गुम गम ।।
‘के छाई खुशबू ।
मेरे जीवन में,
दिया दिखाई सुकूँ ।
था किये घर गुमान ।
मेरे जीवन में,
आकर किया बड़ा अहसान ।
‘के लगे चाँद-चार ।
मेरे जीवन में,
हैं आई बहार ।।
झिलमिलाई मुस्कान ।
लौं जाते जीवन में,
फिर-के आई है जान ।।चन्दनं।।
गद गद उर सुन के ।
अखर-अखर गुन के ।
प्रवचन तेरे,
निहाल हुये, ये करण मेरे ।।
ये नयन मेरे ।
करके दर्शन तेरे ।।
निहाल हुये,
अय ! विशाल हिये ! ।।
चौराहे आके ।
पड़े अमिट पाके ।।
निशां चरण तेरे,
निहाल हुये, ये चरण मेरे ।।
घर पर पड़गा के ।
दृग् जल भर ला के ।।
पखार चरण तेरे,
निहाल हुये, ये सपन मेरे ।
साँझ साँझ आ के ।
सुर ताल साथ गा-के ।।
अमर गुण गण तेरे,
निहाल हुये, ये वचन मेरे ।।अक्षतं।।
मुस्कान ऐसी अमूल दी ।
‘कि शरमाये फूल भी ।।
बगलें झाकतीं कलियाँ,
मुख दिखाने की करती, न भूल भी ।।
शुक्रिया-शुक्रिया
भगवन् !
शुक्रिया-शुक्रिया
थमा ‘दिया’ सब ही तो थमा दिया ।
गुरु जी ने, न क्या-क्या थमा दिया ।।
सुरीला कण्ठ ऐसा मिला |
‘कि शरमाये कोकिला ।
बगलें झाँकती बांसुरी,
चल पड़ी खोजने,
बाँसों का काफिला ।।पुष्पं।।
चाहिये सहारे, न गैरों के मुझको ।
निशाँ मिल गये, तेरे पैरों के मुझको ।।
दाँये से बाँये, है जाये वो हिरणा ।
कहता सा, रह ही, गया दूर घर ना ।।
किस बात का डर, है साथ तुम्हारा ।।
सर पर हमारे, है हाथ तुम्हारा ।।
आँधिंयाँ चलें, आये तूफाँ हहा ! रे !
पार उस खड़े, तुम जो बाहें पसारे ।।
डूबने न पाऊँगा, है विश्वास मुझको ।
जल नहिं, तो देगा,
राह आकाश मुझको ।।नैवेद्यं।।
कोई बिगड़ता ही नहीं, मेरा काम है ।
बिन प्रयास पास आ गया मुकाम है ।।
आगे मैं जमाना मेरे पीछे आ गया ।
जादू मेरा सारे जमाने पे छा गया ।।
तम-सितम-गम की मानो आई शाम है ।
जब से तुमसे जोड़ रक्खा मैंने नाम है ।
देखो वो पतंग मेरी छुये आसमाँ ।
क्या नहीं है पास उसके जिसके पास माँ ।।
बाग-बाग दिल हुआ, करीब राम है ।।दीपं।।
बात-बात में,
पहली ही मुलाकात में,
था मैं अजनबी भले ।।
माँगने से ही पहले,
दिया तुमने मुझे,
ज्यादा ही कुछ फरिश्तों से ।।
मतलबी रिश्तों से ।
दोनों आँखों से ।
दोनों हाथों से ।।
वगैर गिनती कर,
झोली भर भर
ए मेरे गुरुवर !
माँगने से ही पहले,
जाने किस जन्म के मेरे पुण्य फले ।।धूपं।।
जो ‘खोली’
जा झोली घर पर
दी थी जो गुरु जी ने भर-कर ।
जा करके कहीं और,
न हाथ फैलाने पड़े
गुरु जी औघड़-दानी बड़े ।।
दरिया दिली
उसमें नेकी निकली
आँसू बहा करके कहीं और
न हाथ फैलाने पड़े ।
रोशनी विरली ।
उसमें खुशी निकली ।।
जुबाँ मिसरी ।
उसमें दुआ निकली ।।
गुरु जी औघड़-दानी बड़े ।।फलं।।
कब से जिसकी तलाश है ।
वो सकून
सबको जिसकी तलाश है ।
खोजा
हर कहीं जा
मिला तेरे पास है ।।
तू मुझे अपने से जुदा
मत करना अय ! मेरे ख़ुदा
छोटी सी बस यही अरदास है ।
भले पाया तुझे बड़ी मुश्किल से ।
अब दूर नहीं मैं अपनी मंजिल से ।।
होता ऐसा अहसास है ।।अर्घ्यं।।
विधान प्रारंभ
(१)
नयन मेरे, क्यूँ न भर आयेंगे
भर भर घड़े, हम जल भी चढ़ायेंगे
हम घिस मलय चन्दन भी चढ़ायेंगे
हम धाँ-शालि अक्षत भी चढ़ायेंगे
हम वन-नन्द फुल्बा भी चढ़ायेंगे
हम गो-घिरत नेवज भी चढ़ायेंगे
हम घृत अबुझ दीपक भी चढ़ायेंगे
हम महकती सुगंध भी चढ़ायेंगे
हम नारियल, भेले की चढ़ायेंगे
हम नव्य दिव्य द्रव्य भी चढ़ायेंगे
मुझे इससे बड़ा
होगा क्या और नजराना
नजरें उठाना
देखते ही मुझे
तेरा मुस्कुरा जाना
मुझे इससे बड़ा,
होगा क्या और नजराना ।। अर्घ्यं।।
(२)
जब से देखा है तुझे
मन चली मेरी दीवाली
मैं भेंटूॅं जल गगरी न्यारी
मैं भेंटूॅं रस नन्दन क्यारी
मैं भेंटूॅं थाली धाँ शाली
मैं भेंटूॅं नन्दन फुलवा’री
मैं भेंटूॅं अरु चरु घृत वाली
मैं भेंटूॅं दीवा रतनारी
मैं भेंटूॅं सुगंध मनहारी
मैं भेंटूॅं फल सरस पिटारी
मैं भेंटूॅं द्रव वसु-विध सारी
सारे जहाँ से
कुछ हटके बनाया तुझे,
क्योंकि चेहरे से तेरे
हटती ही नहीं नजर
अय ! मेरे गुरुवर ।।अर्घ्यं।।
(३)
घट जल न मिल सका,
दृग्-जल लाकर रखा,
चन्दन न मिल सका,
मुनि-मन लाकर रखा,
अक्षत न मिल सका,
सत्कृत लाकर रखा,
फुल्वा न मिल सका,
दिल और जान कुर्बां
घृत चरु न मिल सका,
व्रत-तरु लाकर रखा,
दीवा ना मिल सका,
दीवाना पन सखा,
सौरभ न मिल सका,
सुर’भी’ लाकर रखा,
श्री फल न मिल सका,
पुण्य कल लाकर रखा,
वस विध न मिल सका,
निज-निध लाकर रखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।अर्घ्यं।।
(४)
भेंटूॅं मैं, गंग जल गागर,
तू कभी तो दे दर्शन, ‘के मेरे घर आकर
भेंटूॅं मैं, गिर मलय चन्दन,
‘के पड़गा पाऊँ तुम्हें, ले हृदय चन्दन
भेंटूॅं मैं, धाँ शाली अक्षत,
भिंजा दिया करो, ‘के कभी तो, जवाबी खत
भेंटूॅं मैं, पुष्प नन्द क्यारी
‘के कल सी न देखता रहूँ राह तुम्हारी
भेंटूॅं मैं, भोग जेते सभी
हुये आहार कहाँ, ‘के पता हो मुझे कभी
भेंटूॅं मैं, घृत ज्योत अबुझ,
बिना कहे बात मन की, ‘के जाये तू समझ
भेंटूॅं मैं, सुरभी दश गंध
कुछ हटके ‘के जुड़े तुमसे संबंध
भेंटूॅं मैं, भेले श्री-फल,
पखारने पैर तेरे ‘के लेके दृग् जल
भेंटूॅं मैं, सब दरब वस-विध
‘के मिल सको किसी विध तुम,
अय ! मेरे नव-निध
न और ख्वाहिश मेरी
तू बस जरा सा मुस्कुरा दे
इक मर्तबा अपनी नजर उठा दे
न और ख्वाहिश मेरी
यही इक गुज़ारिश मेरी ।।अर्घ्यं।।
(५)
साथ अद्भुत हरष,
चढ़ाते ही जल कलश,
पतझड़ हाथ बहार,
साथ गदगद हृदय,
चढ़ाते ही रज मलय,
सरका, सर…का भार,
साथ भावन मृदुल,
चढ़ाते ही तण्डुल,
मंजिल आँखें चार,
साथ सच्ची लगन,
चढ़ाते ही दिव सुमन,
रिश्ते भरी दरार,
साथ श्रद्धा सुमन,
चढ़ाते ही व्यंजन,
चूनर टके सितार
साथ भीतर ललक,
चढ़ाते ही दीपक,
तम मातम यम द्वार,
साथ संप्रीत हट,
चढ़ाते ही धूप घट,
गगन पतंग विहार,
साथ लोचन सजल,
चढ़ाते ही श्रीफल,
अश्रु खुशी दृग् धार,
साथ पुलकन अलग,
चढ़ाते ही दिव अरघ,
नाव लगी उस पार,
तेरी जय जयकार
कृपा बरसाने वाले
रूठ मान जाने वाले
अय ! चित चुराने वाले
महिमा अपरम्पार
तेरी जय जयकार ।।अर्घ्यं।।
(६)
भेंटूँ जल मण-झारी
भेंटूँ चन्दन प्याली
भेंटूँ तण्डुल शाली
भेंटूँ गुल दिव-क्यारी
भेंटूँ चरु घृत वाली
भेंटूँ घृत दीवाली
भेंटूँ सुगंध न्यारी
भेंटूँ फल मनहारी
भेंटूँ फल फुल-वा’री
हूँ बड़ा भाग-शाली
मैं नहीं हूँ अकेला
मेरे सँग तेरी रोशनी रहे
क्या कर लेगा अंधेरा ।।अर्घ्यं।।
(७)
तुझपे निसार किया
न सिर्फ ये कलशी जल की,
मैनें अपना आज, कल भी
न सिर्फ ये झारी चन्दन ही,
मैनें अपना बचा जीवन भी,
न सिर्फ ये शाली अक्षत धाँ,
मैनें अपना रोंआ-रोंआ,
न सिर्फ ये पिटार फुल्वा,
मैनें अपना लम्हा-लम्हा,
न सिर्फ ये चारु चरु घी,
मैनें अपना कृत पुण्य सभी,
न सिर्फ ये ज्योत अनबुझ ही,
मैनें अपना जो कुछ सभी,
न सिर्फ ये घट धूप हट ही,
मैनें अपना नूप दृग् पथ भी,
न सिर्फ ये फल वन नन्दन ही,
मैनें अपना फरसी वन्दन भी,
न सिर्फ ये थाल द्रव्य मण,
मैनें अपना तन-मन-वचन,
तुझपे निसार किया
तूने इतना मुझे दिया
तूने अपना मुझे लिया
साँसों का सरकना
मैंनें दिले-साज अपना
तुझपे निसार किया ।।अर्घ्यं।।
(८)
और न बस, रख इक अरज,
भेंटूँ मैं, जल विगत रज,
भेंटूँ मैं रज मलयज,
भेंटूँ मैं धाँ शाल अज,
भेंटूँ मैं गुल पंकज,
भेंटूँ मैं चरु थाल स्रज
भेंटूँ मैं दीपक अबुझ,
भेंटूँ मैं गंध नीरज,
भेंटूँ मैं फल नन्दनज
भेंटूँ मैं मोती गज,
और न बस, रख इक अरज,
रँगा अपने रंग लो
गुरु जी अहो ! मैं ना कह रहा
मुझे चाँद पे भिजा दो
मुझे चाँद वो दिला हो
मैं तो बस इतना कह रहा
रख अपने सँग लो
रँगा अपने रंग लो
गुरु जी अहो ।।अर्घ्यं।।
(९)
हृदय गद-गद साथ में,
जल गंग-नद हाथ में,
साज धड़कन साथ में,
मलय चन्दन हाथ में,
घनी श्रद्धा साथ में,
अखण्डित धाँ हाथ में,
रोम पुलकन साथ में,
गुल नंद-वन हाथ में,
सहर्षित क्षण साथ में,
सरस व्यंजन हाथ में,
लगन अनबुझ साथ में,
दीपक अबुझ हाथ में,
मासूम मन साथ में,
अन धूप-कण हाथ में,
भाव प्रांजल साथ में,
थाल श्री फल हाथ में,
श्रद्धा सुमन साथ में,
द्रव्य सब धन हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय
गुरु जी आपने जब से,
रखा पग सपनों में,
लिया रख अपनों में,
मिला मनचाहा तब से,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।अर्घ्यं।।
(१०)
आया न यूँ ही,
दर तेरे, गुरु जी,
कलशे जल से, भर के,
हट घट, चन्दन भर के,
थाल, धाँ शाल भर के,
पिटार, द्यु-क्यार भर के,
अरु, थाली चरु भर के,
घी दीपाली भर के,
धूप घट नूप भर के,
फल वन नन्दन भर के,
परात फलाद भर के,
लाया न यूँ ही,
आते ज्यों ही करीब, मेरे घर के,
गुरु जी आप, पाँव-पाँव चल के,
मेरा मनुआ, खो जाता है
जाने मुझे, क्या हो जाता है ।।अर्घ्यं।।
(११)
लाकर सागर क्षीर,
भेंटूँ गागर नीर,
गन्ध नन्द बेजोड़,
भेंटूँ चन्दन घोर,
छव मुक्ताफल भाँत,
भेंटूँ धान परात,
अपने भाँत सुगंध,
भेंटूँ गुल वन नन्द,
छव परात रतनार,
भेंटूँ चरु मनहार,
ले विरदावलि बोल,
भेंटूँ दीप अमोल,
फूटे सुगंध न्यार,
भेंटूँ कदली सार,
मनहर नन्दन क्यार,
भेंटूँ फल रसदार,
कर मिश्रण फल फूल,
भेंटूँ अर्घ अमूल,
साथ ढ़ोक अविराम,
लग चला घर अपने, जो शाम-शाम
अय ! मेरे राम,
हाथ मेरा थाम,
‘के थमा ‘दिया’ मुकाम ।।अर्घ्यं।।
(१२)
बिना तेरे, जी न पायेंगे हम,
द्वार तेरे, चले आये दृग्-नम,
गंध लाये सुगंध न कम,
धान लाने छव आप सम,
पुष्प लाये वन नन्दनम्
रुचरु लाये जन-जन मन रम,
दीव लाये पववान अगम,
धूप लाये, निरुपम अनुपम,
श्री फल लाये कल्प-द्रुम,
अर्घ लाये समेत सरगम,
बिना तेरे, जी न पायेंगे हम,
द्वार तेरे, चले आये दृग्-नम,
बिना तेरे, जी न पायेंगे हम,
अब और कहीं,
जी लगता ही नही,
‘जि गुरु जी,
जी लागा जो तुमसे ।।अर्घ्यं।।
(१३)
क्यों आये हो, इतने दिनों के बाद,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, जल गंग-घाट,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, चन्दन मण पात्र,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, अक्षत विख्यात,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, पुष्प पारिजात,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, चरु चारु पांत,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, लौं अगम वात,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, सुगंध भाँत-भाँत,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, श्रीफल परात,
न सिर्फ मैं, पूछे ये, दिव जल फलाद,
क्यों आये हो, इतने दिनों के बाद,
आपसे इतना कह भी नहीं सकते,
क्यों आये हो, इतने दिनों के बाद,
आपसे इतना घना नेह जो रखते,
क्या हिचकियों ने, न दिलाई थी मेरी याद,
क्यों आये हो, इतने दिनों के बाद ।।अर्घ्यं।।
(१४)
‘के मेरी जिन्दगी, पा जाये रंग
श्रद्धा सुमन समेत,
दृग्-नम लिये भेंट,
जल जमुन-गंग,
चन्दन सभृंग,
अक्षत अभंग,
गुल रंग-रंग,
व्यंजन सभंग,
लौं निस्तरंग,
गंध दश संग,
थाल नारंग,
दरब वसु भंग,
‘के मेरी जिन्दगी, पा जाये रंग
तेरे नाम से,
मेरा नाम जुड़ जाये,
तो उड़ जाये, मेरी पतंग,
मेरी जिन्दगी, पा जाये रंग ।।अर्घ्यं।।
(१५)
तेरे भक्त के नाम से,
पहचानता है सारा शहर मुझे,
मैं चढ़ाऊँ, मैं चढ़ाऊँ, मैं चढ़ाऊँ,
क्यूं न जल निर्झर तुझे,
क्यूं न घट सन्दल तुझे,
क्यूं न धाँ अक्षत तुझे,
क्यूं न गुल बल्लर तुझे,
क्यूं न चरु मनहर तुझे,
क्यूं न लौं अविचल तुझे,
क्यूं न सुगंध इतर तुझे,
क्यूं न फल तरुवर तुझे,
क्यूं न द्रव पातर तुझे,
तेरे भक्त के नाम से,
पहचानता है सारा शहर मुझे,
है क्या खबर तुझे,
तेरे भक्त के नाम से,
पहचानता है सारा शहर मुझे,
है क्या खबर तुझे ।।अर्घ्यं।।
(१६)
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
जल चढ़ाऊॅं दृग्-नम,
चन्दन चढ़ाऊॅं सुरम,
भेंटूॅं अक्षत आप सम,
भेंटूॅं वन-नन्दन कुसुम,
चरु चढ़ाऊॅं मधुरम्
भेंटूॅं दीप तले न तम,
भेंटूॅं सुगंध दिव अगम,
फल चढ़ाऊॅं दिव्य-द्रुम,
भेंटूॅं अर्घ वसु न कम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।अर्घ्यं।।
(१७)
डाल मुझपे दो, इक नज़र,
कलशे, में जल से लाया भर,
लाया घट चन्दन मलयागिर,
लाया मण पातर धाँ आखर,
लाया वन-नन्दन फुलवा-लर
लाया घृत निर्मित चरु पातर,
लाया लौं आखर मनुआ-हर,
लाया घट सुगंध हट ‘भा’धर,
लाया रस आगर फल सादर,
लाया द्रव पातर वसु-धा अर,
डाल मुझपे दो, इक नज़र,
दया बरसा,
अय ! मेरे गुरु सा,
कृपा बरसा
डाल मुझपे दो, इक नज़र ।।अर्घ्यं।।
(१८)
कञ्चन कलशे,
भर कञ्चन जल से,
कञ्चन झारी,
चन्दन मनहारी,
अक्षत दाने,
छव गौर, सुहाने,
पुष्प पिटारी,
वन नन्दन क्यारी,
व्यंजन नीके,
अठपहरी घी के,
ज्योत अनूठी,
बाती घृत डूबी,
गंध कपूरी,
सुगंध, कस्तूरी,
थाल सुनहरी,
फल ऋत-ऋत मिसरी,
द्रव्य अनोखे,
परात रत्नों के,
भेंटूँ समेत दृग्-नम,
औरों को कम,
है जरूरत तेरी, मुझे दर कदम
हूँ अभी मैं नन्हा सा पौधा
खा न सकता,
हा ! हहा !
जाँ लेवा,
हवा का झोका,
पड़ रहे डग-मग कदम,
है जरूरत तेरी, मुझे दर-कदम ।।अर्घ्यं।।
(१९)
साथ चले आँसू भी आये,
लाये मण-कलशे,
भर प्रासुक जल से,
लाये घिस चन्दन,
मलयागिर नंदन,
लाये धाँ शाली,
रत्नों की थाली,
लाये गुल नाना,
नन्दन बागाना,
लाये व्यंजन घी,
आये मिल शबरी,
लाये दीवाली,
गिर गो घी वाली,
लाये कस्तूरी
घट चन्दन चूरी,
लाये फल न्यारे,
देव पुरी वाले,
लाये जल आदिक,
इक अपने माफिक,
साथ चले आँसू भी आये,
‘के तुझे हिचकी आये,
ज्यादा न सही,
भले एक ही,
पै तुझे, मेरे नाम की हिचकी आये,
दूर तू, पाती भी तेरी,
आती नहीं,
क्या तुझे याद, थोड़ी भी मेरी,
सताती नहीं ।।अर्घ्यं।।
(२०)
आया हूँ पास तेरे, मैं पहले रब से,
हाथों में जल लेके, मैं खड़ा हूँ कब से,
चन्दन परिमल लेके,
शाल धाँ धवल लेके,
सहस दल कमल लेके,
चारु चरु नवल लेके,
दीप लौं अचल लेके,
गंध दश चपल लेके,
परात श्री फल लेके,
अरघ दृग्-सजल लेके, मैं खड़ा हूँ कब से,
आया हूँ पास तेरे, मैं पहले रब से,
अन्तर्यामी ऐसा कैसा तू,
आ भी जा तू,
बिन तेरे,
ये नमन मेरे,
ढ़ोलते रहते आँसू,
आ भी जा तू ।।अर्घ्यं।।
(२१)
न यूँ ही, मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
सुनहरा घड़ा,
लिये जल भरा,
लिये, सुनहरा,
गंध, घट भरा,
पिटारा बड़ा,
लिये धाँ भरा,
वन हरा-भरा,
लिये गुल निरा,
घिरत ‘गो-निरा’,
लिये चरु निरा,
लौं अनक्षरा,
लिये दृग्-हरा,
लिये घट बड़ा,
गंध मन-हरा,
नन्द-वन फरा,
लिये फल निरा,
लिये मण जड़ा,
थाल द्रव निरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।अर्घ्यं।।
(२२)
झोली पाई भरी,
सुनहरी, मण-जड़ी,
चढ़ाते ही जल गगरी,
वन निरी ! मन-हरी,
चढ़ाते ही गंध निरी,
गहरी पिटारी भरी,
चढ़ाते ही धाँ विरली,
वनी नन्दन विरली,
चढ़ाते ही पुष्प लड़ी,
सुनहरी, थाल गहरी,
चढ़ाते ही घृतावरी,
मण-जड़ी दृग्-हरी,
चढ़ाते ही दिपावली,
दृग्-हरी, मन-हरी,
चढ़ाते ही सुगंध ई
मण-जड़ी, थाल निरी,
चढ़ाते ही फल मिसरी
झोली पाई भरी,
थाल बड़ी, मण-जड़ी,
चढ़ाते ही द्रव सबरी,
झोली पाई भरी,
बुलबुल पीछे,
आगे तेरी सुर-तान है
न फैलानी पड़ी,
झोली पाई भरी,
मेरा दिल पीछे,
आगे तेरी अदा-ए-एहसान है
गुल पीछे,
आगे तेरी मुस्कान है ।।अर्घ्यं।।
(२३)
बनूँ ‘के आप जैसा ही,
लाया जल क्षीर सुराही,
लाया ‘चन्दन’ छाया ही,
लाया शाली धाँ शाही,
लाया गुल अपने सा ही,
लाया चरु अरु जग माहिं,
लाया लौं घृत अवगाही,
लाया सुगंध मन-चाही,
लाया श्रीफल चोखा ई,
लाया द्रव दृग्-पथ राही,
बनूँ ‘के आप जैसा ही,
ऊँचे विचारों वाला,
सद्-गुण सितारों वाला,
घर न किसके कर लेता है,
उर न किसका हर लेता है,
ताने तरुवर सा छाता
आपका जीवन सादा ।।अर्घ्यं।।
(२४)
दृग्-सजल,
आ बैठते पल,
गुरुदेव चरणों में,
भेंटते जल,
भेंट संदल,
धाँ भेंट धवल,
गुल भेंट कँवल,
चरु भेंट नवल,
लौं भेंट अचल,
खे धूप अनल,
भेंट श्रीफल,
द्रव भेंट सकल,
गुरुदेव चरणों में,
दृग्-सजल,
आ बैठते पल गुरुदेव चरणों में,
खुले किस्मत,
गुरुदेव चरणों में,
मिले जन्नत,
आ बैठते पल गुरुदेव चरणों में,
दृग्-सजल,
आ बैठते पल गुरुदेव चरणों में ।।अर्घ्यं।।
(२५)
ले आश गन्धोदक,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ उदक,
ले आश चरण वन्दन,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ चन्दन,
ले आश भक्ति नवधा,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ शालि धाँ,
ले आश इक नजर,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ गुल अमर,
ले आश चरण रज,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ नेवज,
ले आश इक झलक,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ दीपक,
ले आश सुख अमंद,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ सुगंध,
ले आश दृग्-सजल,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ श्री फल,
ले आश घर-सुरग,
मैं तुम्हें, चढ़ाऊँ अरघ,
साथ श्रद्धा सुमन,
‘के रात देखा सुपन,
देखें ये मेरे नयन,
कुछ कर दो ऐसा,
अय ! मेरे गुरु सा
गुजारिश,
यही ख्वाहिश,
न अरमान दूसरा,
अय ! मेरे गुरु सा ।।अर्घ्यं।।
(२६)
तुम्हें भिंटाऊँ मैं,
नैन भिंगाऊँ मैं,
रतनारी,
जलझारी,
हट कंचन,
घट चन्दन,
आखर कण,
पातर मण,
छव मंजुल,
पिटार गुल,
घृत पकवाँ,
अमृत निधाँ,
लग पाँती,
दीवा घी,
छव कुछ हट,
सुगंध घट,
नवल नवल,
रित-रित फल
सरब दरब,
सुर गौरव,
तुम्हें भिंटाऊँ मैं,
स्वप्न इतना
‘के मुझे अपना,
कह दो ‘ना’
मुझे अपना,
मैं तेरा हूँ
है मेरा तू
कह दो ‘ना’ ।।अर्घ्यं।।
(२७)
बरसा दो कृपा,
सूना मेरा घर-द्वार
छोडूंँ चरणन जल धार,
भेंटूँ रज मलयज झार,
भेंटूँ चरणन धाँ शाल,
भेंटूँ दिव पुष्प पिटार,
भेंटूँ व्यंजन मनहार,
भेंटूँ घृत दीप प्रजाल,
भेंटूँ सुगंध-दश न्यार,
भेंटूँ श्री फल मण थाल,
भेंटूँ दिव द्रव्य कतार,
सूना मेरा घर-द्वार
बरसा दो कृपा,
कृपया, बरसा दो कृपा
चल दी होली सूनी,
चल दी राखी सूनी,
न ऐसा हो,
गुरु जी अहो.
‘के चल दे दिवाली सूनी,
बरसा दो कृपा,
कृपया, बरसा दो कृपा ।।अर्घ्यं।।
(२८)
बनी आँखें गंगा जमुना,
बना लो तुम, मुझको अपना,
कृपा करके कृपया भगवन्,
धार छोडूँ जल घट कंचन,
धार छोडूँ चन्दन चरणन,
धान भेंटू अक्षत कण-कण,
पुष्प भेंटूँ उपवन नन्दन,
थाल भेंटूँ षट्-रस व्यंजन,
दीप भेंटूँ लौं अगम पवन,
चूर भेंटूँ मनहर चन्दन,
झाल भेंटूँ श्रीफल दक्षिण,
अर्घ भेंटूँ परात-मण धन,
कृपा करके कृपया भगवन्,
बना लो तुम, मुझको अपना,
कोई और मेरा सपना,
है भी तो नहीं
है तू ही मेरी जिन्दगी,
हर खुशी है तू ही ।।अर्घ्यं।।
=जयमाला=
गिनते-गिनते पीछे छूटीं सभी अँगुलियाँ
पोर पड़ चले कम
उमड़ चली है, जारी दुनिया
लेने व्रत संयम
गिनते-गिनते पोर पड़ चले कम
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या-सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे सारी दुनिया भागी-भागी आई
‘रे बहना… ओ ! भाई
जलन दिलों से,
चुभन गुलों से
ले चाली रुखसत
सिर्फ़ न पन्नों में
अब आत्म-सात शिव सुन्दर सत् ।
आज पढ़ाई आखर ढ़ाई,
रही न नामुमकिन
हवा हवाले, हवा पश्चिमी,
दीखे तारे दिन ।
वसुधा बन चाली कुटुम्ब,
नभ छूने में आया
अनबन गोरों के जैसी,
भागी समेट माया ।
हाई-को ?
विनन्ती म्हारी,
निकल आये आप से रिश्तेदारी
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
दोहा-
बस आता, अब धारता,
ईश आशिका शीश ।
बनी रहे यूँ ही कृपा,
सिर ‘सहजो’ निशि-दीस ।।
( यहाँ पर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)
*आरती*
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।।
पूरण मल्-लप्पा मनकाम ।
श्रीमति हाथ सुकृत परिणाम ।।
चांद शरद गोदी अभिराम ।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।।१।।
लुभा न पाये भोग तमाम ।
पुष्प-बाण करने नाकाम,
गुरु चरणन आ किया प्रणाम ।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।।२।।
लुंचन केश, छोड़ धन-धाम ।
मुंचन भेष साक्ष मुनि स्वाम ।।
सहजो सजग सुबह क्या शाम ।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।।३।।
नखत संघ बिच चन्द्र ललाम ।
साधें जनहित ढ़ेरों काम ।।
कीर्त अगम पाथर जिन-धाम ।।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।।४।।
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