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ध्यान संधान गीता

ध्यान संधान गीता-; 21से30

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
21

(२१)
अपनी आँख बन्द कर
मैंने झाँका अन्दर
दिखा मुझे एक शान्त समुन्दर
आहा ! अहा ! 
मैं अन्दर ही अन्दर
बड़ा खुश हुआ

पर हा ! हहा !
जाने ये क्या हुआ
आ विकल्प ने मुझे छुआ
यानि ‘कि किसी ने फेंका कंकर
फिर ? फिर क्या
दिखा मुझे लहर खाता समुन्दर

हा ! हहा !
मैं अन्दर ही अन्दर
बड़ा दुखी हुआ
‘के मैंने चलाकर
क्यूँ विकल्प छुआ

(२२)
भाग-दौड़ है
दौड़-धूप है
बाहर और कुछ भी नहीं
किन्तु क्या कुछ नहीं
भीतर, चेतन चिद्रूप है

चिन्मय, चिन्मयानन्द
चिदानन्द, चिच्-चिदानन्द
अमृतानन्द कूप है
भीतर, चेतन चिद्रूप है

ज्ञान-घन ज्ञानानन्द
आनन्द पिण्ड सहजानन्द
अक्षयानन्त रूप है
भीतर, अमृतानन्द कूप है

(२३)

बाहर टोका-टोकी है
अन्दर निधी अनोखी है
अन्दर नीका नीका है
बाहर फीका फीका है

बाहर थारी म्हारी है
बाहर माथा भारी है
बाहर झूठी यारी है
अन्दर आत्म हमारी है

बाहर हेरा-फेरी है
अन्दर डूब घनेरी है
अन्दर नीका नीका है
बाहर फीका फीका है

बाहर थारी म्हारी है
बाहर माथा भारी है
बाहर झूठी यारी है
अन्दर आत्म हमारी है

(२४)

स्वार्थ भरी दुनिया
बेदाग दामन कहाँ
हहा ! माँ नागन यहाँ
अंधेरा पले, तले दीया
स्वार्थ भरी दुनिया
मन ध्याओ सुबहो-शाम
एक आत्मा राम
अपना एक आत्मा राम

जमा…ना
है जमाना दोगला
गिरगिट रंग बदलू
यहाँ गड़ियाली आँसू
धोखा खिलाना कला
जमा…ना
है जमाना दोगला
मन ध्याओ सुबहो-शाम
एक आत्मा राम
अपना एक आत्मा राम

मतलबी रिश्ते नाते
मीन मुख मीन दबी
श्वान श्वान अजनबी
कसाई खाने माते
मतलबी रिश्ते नाते
मन ध्याओ सुबहो-शाम
एक आत्मा राम
अपना एक आत्मा राम

(२५)
धीरे-धीरे सब उड़ रहा है
न’ कि धीरे-धीरे सब जुड़ रहा है
जोड़ा छोड़ना इक दिन
‘रे हिरणा दौड़ ना रुक छिन

धीरे-धीरे सपना खो रहा हूँ
न’ कि धीरे-धीरे सब
अपना हो रहा है
‘रे कफन ओढ़ना इक दिन
जोड़ा छोड़ना इक दिन
‘रे हिरणा दौड़ ना रुक छिन

धीरे हीरे कोयले ही’रे
न ‘कि धीरे-धीरे कोयले हीरे
घरौंदा तोड़ना इक दिन
‘रे कफन ओढ़ना इक दिन
जोड़ा छोड़ना इक दिन
‘रे हिरणा दौड़ ना रुक छिन

(२६)
भीतर आओ
तुम भी तर आओ
अनगढ़ भीतर आये
भव जलधि तर आये

शिवभूति से भी तर गये ।
न भट कोटि से ही तर गये ।।

चोर अंजन से भी तर गये ।
न सिर्फ चन्दन से ही तर गये ।।

जीव गिंजाई से भी तर गये ।
न दीप स्थाई से ही तर गये ।।
भीतर आओ
तुम भी तर आओ
अनगढ़ भीतर आये
भव जलधि तर आये
चोर अंजन से भी तर गये ।
न सिर्फ चन्दन से ही तर गये ।।

(२७)

क्या लाये, क्या ले चलना ।
पाप आप मत्थे मढ़ना ।।
बंधी मोह पाटी खोलो
भाग-दौड़ को बस बोलो

बन्जारे जैसा डेरा ।
क्यूँ करना तेरा-मेरा ।।
सहजो समता रस घोलो ।
भाग-दौड़ को बस बोलो

आगे नाक कहाँ अपना ।
पीछे पीठ, रहा सपना ।।
सरगम भीतर सुन तो लो ।
भाग-दौड़ को बस बोलो

(२८)
बाहरी विकल्प सारे छोड़ दो ।
सुनो,
अपना एक आत्मा चुनो

कुछ भी साथ नहीं जायेगा ।
जोड़ा यही रह जायेगा ।।
सिवाय एक आत्मा
कुछ भी साथ नहीं जायेगा ।

सवार चला जायेगा ।
घोड़ा यही रह जायेगा ।।
जोड़ा यही रह जायेगा ।।
सिवाय एक आत्मा
कुछ भी साथ नहीं जायेगा ।

उड़ चालेगा रंग,
कट चलेगी पतंग ।
डोरा यही रह जायेगा ।।
जोड़ा यही रह जायेगा ।।
सिवाय एक आत्मा
कुछ भी साथ नहीं जायेगा ।

(२९)

हटो हटो, दूर हटो
सक्लेश तुम
अय ! राग द्वेष तुम

हटो हटो, दूर हटो
मान माय तुम
अय ! नो कषाय तुम

हटो हटो, दूर हटो
विसम्वाद तुम
अय ! प्रमाद तुम

हटो हटो, दूर हटो
अय ! विकल्प तुम
निर्विकल्प हम
समयसार कह रहा, निर्विकल्प हम

(३०)

छिपकली साध ले छत को
रुक श्वान रोक ले रथ को
मैं कर्ता नहीं किसी का
इक मत आचार्य सभी का
मैं ज्ञाता हूँ, मैं दृष्टा हूँ
मैं कर्ता नहीं किसी का
इक मत आचार्य सभी का

नभ बिच्छू पूंछ संभाले
बढ़ जड़ मग धरण चुरा ले
मेंढ़क बन चाले ‘छत-पत’
गर्दन नभ छू ले गिरगट
मैं कर्ता नहीं किसी का
इक मत आचार्य सभी का
मैं ज्ञाता हूँ, मैं दृष्टा हूँ
मैं कर्ता नहीं किसी का
इक मत आचार्य सभी का

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