(५१)बाहरदन्द-फन्द, द्वन्द है कोहरा है, धुन्ध हैकर्मों का बन्ध है अन्दर,आनन्द ही आनन्द है सोने सुगन्ध है परिणति सन्त हैभावी भगवन्त हैशान्ति अनन्त है अन्दर,आनन्द ही आनन्द है सार सभी ग्रन्थ हैमोक्ष का पन्थ हैभावी भगवन्त हैशान्ति अनन्त है अन्दर,आनन्द […]