सवाल
आचार्य भगवन् !
पुराने भैय्या बहिन रह जाते हैं,
और नये लोगों को आप दीक्षा दे देते हैं
तो क्या चीन-चीन रेवड़ी बाँटने की
कहावत हावी हुई है सहजो निराकुल वृत्ति पर,
यदि नहीं तो क्या बात है,
कृपया कहिये ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
आचार्य देव,
श्री ज्ञान सागर जी महाराज ने कहा था,
‘के गुरुणांगुरु आचार्य प्रवर,
श्री शान्तिसागर जी कहते थे
“पद दिये जाते हैं,
और दीक्षा ली जाती है”
सो मेरे हाथ में, मेरी अपनी दीक्षा के सिवा,
और था हो क्या ?
मैं यदि किसी को दीक्षा दे सकता
तो सभी के हाथों के थमा देता,
संयम, साधना, समता
बस यही कारण है,
लेने वालों नये बच्चे दीक्षित हो जाते हैं
और अलसाने वाले पुराने,
और पुराने होते जाते हैं
मैं इस उत्तर देने के अवसर पर कहूँगा
‘के ताला न खुलने पर
चाबी का गुच्छा न फेंकें
बल्कि चाबी फेरें
ताला तो इशारे में खुलता है,
वक्त कहाँ लगता है,
स्वयं कह रहा ‘भाग’
‘रे भाई जाग
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!