सवाल
आचार्य भगवन् !
आप आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज की
लाठी थे,
सुनते हैं,
चश्में भी थे, आप उनके
ऐसा लोग कहते हैं,
क्या औरस पुत्र करेगा,
इतनी सेवा माता पिता की
जितनी आपने अपने गुरुदेव की
वैयावृत्ति की है,
सो क्या आप भी मानते हैं
लाठी और चश्में होने की बात,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
भाई…
मेरी हैसीयत ही क्या ?
जो इतनी बड़ी शख्सीयत को साधूँ
हाँ कभी साधा भी होगा
तो छिपकली जैसे
जैसे वह मकान की छत को साधे रहती है,
वैसी ही कुछ होगी खुशफहमी
और खुशफहमी में
खुश खुसखुसा रहता है
बम्बई की मिठाई सा रहता है
रक्खा नहीं ‘कि जुबाँ के ऊपर
देखते ही देखते हवा, छू-मंन्तर
सो सुनिये
अवर्णवाद न चुनिये
हाँ… सहजो-सरल गुरु भगवन्त
जरूर मेरी लाठी थे
मेरा चश्मा भी
मुझ पर उनकी किरपा
थी…
रहेगी…
और है भी अनन्त
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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