सवाल
आचार्य भगवन् !
सुुनते हैं,
ब्रह्मचारी-विद्याधर जी,
मंदिर जी में कोई शास्त्र खोलें,
तो पूरा करके ही उठते थे
सो भगवन् !
इतने बड़े-बड़े शास्त्र जी,
सरसकी नजर से भी यदि कोई देखे,
तो दिन ढ़ल जाये
आप कैसे पारायण कर लेते थे भगवन् !
अद्भुत अद्भुत, अद्भुत
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये जी,
क्रियाएँ भी बहुत कुछ बोलें
शास्त्र ‘खो…लें’
न सिर्फ तोते जैसा रटाया था
माँ…ने
एक कान बंद करके,
दूसरे कान में मंत्र-फूँँक करके पढ़ाया था
‘के कहा देव-शास्त्र-गुरुदेव
माने सदैव
किसी भी कीमत पर
यहाँ तक ‘कि जान की भी न परवाह कर
और शास्त्र न बस दो चार
न सिरफ हजार
बल्कि गणना पार
होली जली पूरे छह माह
न जल सकी एक लाइब्रेरी
सच लाइब ए…’री
न ‘कि अफवाह
और हाँ माहनी मनीषा
लख
देर ढ़ेर मेर
लिख न छकी
और हा ! हम मोहिंयों की
ये दशा ‘कि दूर इति,
‘अथ’ में ही हमारी मति थकी
यानि ‘कि हाथ के हाथ
भाई…है ये तो गलत बात
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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