सवाल
आचार्य भगवन् !
श्राविका तो दूर,
श्रावकों से भी आप,
नजरें मिला के, बात नहीं करते है
लेकिन भगवन् !
नजरें न मिलें,
तब तक तो बात अधूरी सी लगती है,
आपका मन कैसे मान जाता है,
हमें भी सिख’ला दो ना
अद्भुत कला ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिये,
ना…ना की कम
अपना नादाँ
नजर खा जाता,
अपनी ही माँ की ज्यादा
और कह ही रहा शब्द नजर
न…जर
जड़ से जितना बन सके
न…जुड़ सखे !
पता,
अक्षर पलटते ही क्या कहता
न… ज…र
र… ज…न
रज भी न बचे
बखूब…
खूूब रंग चुराना जानती नजर
और आप कह रहे जो सिख…ला दो
तो ऐसे वैसे न आती सिख
‘जी…बाल’,
ब्रह्म रंध से गुजार
करनी पड़ती साज संभार
आ…मरण
भले कह रहा
पर वास्तव में कहाँ
आम… रण
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!