सवाल
आचार्य भगवन् !
महामंत्र णमोकार को,
एक अक्षर में पढ़ना चाहें तो
ओं बीजाक्षर जगत् प्रसिद्ध है ही,
क्या हम भक्तामर स्तोत्र को भी,
छोटे से छोटे रूप में पढ़ सकते हैं,
सुनते हैं,
बडे़ बाबा से
आपकी बातचीत होती रहती है,
और छोटे बाबा नाम से
आप जाने ही जाते हैं,
सो जैसे बने वैसे
बड़े बाबा से पूछ-ताछ करके,
छोटा सा भक्तामर स्तोत्र
रच दीजिये ना,
ताकि हम भी,
गणेश जैसे
उमा-महेश की प्रदक्षिणा देकर
प्रथम पूज्य पाँत में
सबसे पहले आकार के बैठ चलें
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
आजकल सुर्ख़िंयों में
छाया हुआ है खूब
‘नमो’
सुन रहे हैं ना आप लोग
‘नमो’
सार्थक सम्मान सूचक शब्द जो है,
अपने पराये किसी के लिये भी
चुभता नहीं है,
बल्कि सोने में सुहाग जैसे फबता ही है,
नरेन्द्र का ‘न’ ले लिया
और मोदी का ‘मो’
और लो
एक नया
सार्थक शब्द ‘नमो’ निर्मित हो चला
बस,
कुछ कुछ इसी तरीके से
स्तोत्र-राज भक्तामर जी का
पहला शब्द भक्तामर
और उसका पहला अक्षर ‘भ’,
अब देखो
दुखहारी-सुखकारी भक्तामर जी का
अन्तिम शब्द ‘समुपैति लक्ष्मीः’
और इस शब्द का अन्तिम अक्षर दीर्घ ‘ई’
सो दोनों अक्षर मिलाते ही
एक नया-सा शब्द निर्मित हो चलता है ‘भी’
और बड़ा सार्थक शब्द है ‘भी’,
अनेकान्त का पर्यायवाची
जैन धर्म की नींव है
हा ! हहा ! मैं ही सही हूँ
ऐसे अहम् का समर्थक शब्द ‘ही’ है,
और ‘भी’ अनोखा है,
अर्हम् का वाची है
मूकमाटी के शिल्पी ने
अपने घड़े की सुन्दरता में
चार चाँद लगाने के लिये
जहाँ पर अखण्ड अंक ९
और सहजो-सामंजस
बैठालने वाले अंक
६३ को स्थान दिया है,
वहीं पर
‘भी’ का भी खूब सम्मान किया है
सो आओ खिसका
‘भी नमो नमः’ जाप मनके
खिसकाते पाप मन के
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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