सवाल
आचार्य भगवन् !
‘छहढाला’ के रचनाकार
पण्डित दौलत राम जी का नाम
कुछ-कुछ खटकता सा है ?
भगवन् !
दौलत शब्द तो उर्दू का है ना,
और राम जी शब्द हिन्दी का है,
और स्वामिन् !
पण्डित जी साब,
जैन मतावलंबी,
जाने-माने चोटी के विद्वान,
जिन्होंने पूर्वाचार्यों का मंतव्य
ज्यों का त्यों,
जनसामान्य प्रचलित लोक भाषा में
अक्षरशः उतार दिया है,
धन्य हैं हम,
जब हमारे पण्डिंतों के ज्ञान का
इतना वैभव है,
तब आचार्यों के ज्ञान की
महिमा का क्या कहना है ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
आपसे किसने कहा,
‘के दौलत शब्द
सिर्फ उर्दू भाषा का है,
देखिये ना,
द्यानतराय जी कृत
स्तोत्रराज श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र के,
ऐसे वैसे नहीं
छटे छटाये काव्य की बात कर रहा हूँ,
चलिये पढ़ते हैं हम,
‘महा मोह अंधेर को ज्ञान भानं,
महाकर्म कान्तार को दौ प्रधानं’
इसमें ‘दौ’ शब्द का मतलब क्या है ?
गिने चुने व्यक्तिंयों को ही पता होगा,
मुझे भी मेरे भगवन्
आचार्य श्री ज्ञानसागर जी गुरुदेव ने
बतलाया था,
दौ यानि ‘कि दव,
दावानल मतलब जंगल की आग,
सो पण्डित जी साब कहना चाहते हैं,
‘के भगवन् !
आपका दर्शन
महा मतलब निधत्ति-निकाचित
जो कर्म हैं,
वह हुआ कान्तार
यानि ‘कि घना जंगल,
उसके जलाने के लिये
दावानल की विकराल
अग्नि के जैसा है,
सो दौलत शब्द में भी
दौ दावानल का वाची है,
अर्थात् लत कोई भी हो
लता के जैसे
पता ही नहीं लगता है,
कब फैल जाती है,
सहजता में बाधक
उस लत के लिये,
जो दावानल के जैसा है,
वह अद्भुत व्यक्तित्व वाला
एक निराला व्यक्ति,
सो ऐसे पण्डित जी साब थे ही,
अब देखिये,
दौलत शब्द के पीछे
जुड़ करके राम जी शब्द
बड़ा कीमती ही नहीं,
शिक्षाप्रद भी बन चला है,
वैसे बच्चा भी समझ सकता है
कोई विशेष बात नहीं है,
सीधी-सीधी सी बात है,
‘के दौलत जिसके पीछे
सारी दुनिया पागलों के जैसे
दौड़ रही है,
वह कुछ और नहीं,
सिवाय राम जी के
सच,
‘बगल में छोरा
और गाँव भर में ढिंडोरा’
बड़ा सार्थक नाम है
दौलत राम जी
है ना…
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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