सवाल
आचार्य भगवन् !
गुरुदेव ज्ञान सागर जी का जयकार आप मंगलाचरण रूप पहले तो, हर रोज करते ही हैं
लेकिन कोई विशेष बड़ा कार्यक्रम होता है
तब बीच में बीच मंगलाचरण रूप जयकार लगाते हैं
और अंत में अंतिम मंगलाचरण रूप जयकार लगाते हैं, ऐसा क्यों
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कभी आगे न रक्खा
कहीं मैं दौड़ कर
दूसरे रास्ते न मुड़ जाऊँ
कभी पीछे न रक्खा
कहीं मैं बैठकर
सही रास्ते से न बिछुड़ जाऊँ
मुझे अपने साथ रक्खा
उन्होंने
अपने हाथों में ले मेरा हाथ रक्खा
और ले चले…
ले मेरे-से नन्हें-नन्हें कदम
‘के कल छूना जो आसमाँ
सो आज जमीन से तो जुड़ जाऊँ
खूब चाली चाल
लोगों मे बखूब बिछाया जाल
पर हर बार मैं बच निकला बाल-बाल
वजह
मेरी माँ रखती अनबूझ दीया
जो मंदिर का शामो-सुबह
गुल जलाती
धूप
चिलचिलाती
रास्ते भर
सिर ऊपर अजनबी
एक बदली करती रही छाँव
है ढ़लने को सूरज
था निकलने को सूरज
मैं घर से था निकला जो छू…रज माँ पाँव
जीवन में गुरु का आना
यानि ‘कि बिछुड़े बछड़े और माँ का मिल जाना
बच्चे की तकलीफ में
तकलीफ में आये माँ
बच्चे की तारीफ़ में
तकलीफ में आ जाये माँ
‘के बच्चा उसका नजर खा जाये ना
सो बलाओं से झगड़ती रहती है
माँ
दुआएँ पड़ती रहती है
जागने से सोने तक
सोने से सपने के खोने तक
‘के ‘बच्चा’ मोर मा…’लक’
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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