सवाल
आचार्य भगवन् !
माँ के अलावा भी दूसरा कोई
सहजो किरदार है जो भगवान् का
हाथ बँटाता हो
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
हाँ…हाँ…
पूरा परवार
निभा रहा किरदार
परवर दिगार
देखो
ठीक बिल्कुल माँ के भाँति है
चोट लगती हमें,
चाची के मुख चीख आती है
चला कर बाजी हार जाती हमसे
इक यही तो,
बेमतलब प्यार जताती हमसे
बनती कोशिश,
चेहरे हमारे मुस्कान लाती है
ठीक बिल्कुल माँ के भाँति है
चोट लगती हमें,
चाची के मुख से चीख आती है.
हाँ हाँ ठीक बिल्कुल माँ के भाँति है
अँखिंयाँ इसकी, आँसू हमारे होते
रूठे दुनिया, सहारे इसके हम, किनारे होते
बचपन से ही, विरासत में मिली,
सुख-दुख की साथी है
ठीक बिल्कुल माँ के भाँति है
चोट लगती हमें,
चाची के मुख से चीख आती है.
हाँ हाँ ठीक बिल्कुल माँ के भाँति है.
चाची…इक साँची
और ऐसी ही माँ दादी भी
मेरे कदमों की आहट
खूब बखूब
वाह खूब जानती है दादी
मेरा दर-कदम
दबा दबा कर
घर-के अन्दर कदमों का लेना
और सुदूर
नाक की जगह
चश्मे को सिर पर बिठाले
बैठे-बैठे सोफे से ही
दादी का कह देना
बेटा ! आज फिर इतनी देर लगा दी
मेरे कदमों की आहट
खूब बखूब
वाह खूब जानती है दादी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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