सवाल
आचार्य भगवन् !
‘एक गीत’
दही दूध-घी के बदले
सिक्का खोटा ले आना
करके एक का सवाया
वापिस लौटा के आना
बखूब जानती खूब गैय्या ।
यूँ ही न कही जाती मैय्या ।।
जा वन चरे औषधी पौधे ।
नेह लुटाये बग़ैर सौदे ।।
स्वस्थ्य रखे यूँ तन, मालिक मन,
गंग-जमुन जल माफिक धो दे ।।
और दूध होते है धोरे ।
लिये दूध पीलापन गो ‘रे ।।
रक्खे घोरे स्वर्ण दूध में,
ताकि रोग ना धावा बोले ।।
कोटि देवता निवास इसमें ।
तारे भव-वैतरण निमिष में ।।
कामधेन जश कीरत गाथा,
बहुचर्चित परपाटी ऋष में ।।
आप सच कहते हैं माँ गो…
माँगो जो चाहा सो
मुनादी पीट के कहती है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सच
आ पालते गाय के लिये
आधार जैविक खेती है
मुफ्त में ‘गो-रव’ देती है
दे बता और क्या चाहिये
आ पालते गाय के लिये
दूध मे स्वर्ण तभी पीला
न गो बिन, गोविन्दा लीला
जाँ फूँके बुझते-से दिये
आ पालते गाय के लिये
दे बता और क्या चाहिये
आ पालते गाय के लिये
पञ्च गव्य दवा अचूक है
पैर छुये, गुम भूल-चूक है
स्वयं सिद्ध शुभ मुहूरत ये
आ पालते गाय के लिये
दे बता और क्या चाहिये
आ पालते गाय के लिये
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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