सवाल
आचार्य भगवन् !
‘एक गीत’
गाय धन, गाय धन, गाय धन
घास-फूस खा रही ।
दूध घी खिला रही ।।
कामगो ! अचिन्त्य मण ।
गाय धन, गाय धन, गाय धन
‘सी’ ‘ओ टू’ दे रही ।
‘सी ओ टू’ ले रही ।।
मित्र पर्यावरण ।
गाय धन, गाय धन, गाय धन
शोर गौ रव नहीं ।
और गोरव नहीं ।।
बाँटे चैनो अमन ।
गाय धन, गाय धन, गाय धन
रो न वर्षा रही ।
रतन बर्षा रही ।।
एक तन मन वचन ।
गाय धन, गाय धन, गाय धन
ले सहारा नहीं ।
दे सहारा रहीं ।।
सहज निराकुल श्रमण ।
गाय धन, गाय धन, गाय धन
सचमुच ही होती है गाय धन
पर हा ! हहा !
जी जलता है मेरा,
आज गाय रास्तों पर बेघर घूमती रहतीं हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सच
भोला भाला प्राणी है ।
कलिजुग धर्म निशानी है ।।
दही, दूध की बहे नदी,
केवल घास खिलानी है ।।
चेहरा है मासूम बड़ा ।
सब कुछ सहे, न कहे जरा ।।
जा बैकुण्ठ कहोगे क्या,
क्यूँ कसाई-घर किया खड़ा ।।
आँखें लाल बनाये ना ।
पारा चढ़ा दिखाये ना ।।
सुना ! बेजुबाँ हाय बुरी,
आँसू भू छू जाये ना ।।
सिर्फ दिखाने सींग रखे ।
ना स्याही इतिहास लिखे ।।
घास मुँह दबाये आये,
टूटे ना विश्वास सखे !
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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