सवाल
आचार्य भगवन् !
आप कहते जगत् वही रह सकते हैं
जो जगत रहते हैं
पर बने तब ना,
प्रमाद तो पल-पल,
अपना अधिकार जमाता है मुझ पर
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
मोरों की कमी नहीं,
माँ बिना कहे ‘मारो’ निगलने खड़ी
उसके बाद भी नाम अज…गर पा गया कोई
मुस्तैद तो होगा
किस-किसके मुँह से छोटी नहीं है,
शरीर की साईज
लेकिन सार्थ नाम छिप, छिप कलिंयों के बीच डायनासोर बन चला है कोई
मुस्तैद तो होगा
चीटिंयाँ नाक खूब, बखूब रखतीं हैं
चिड़िंयाँ चोंचे कम लम्बीं न रखतीं हैं
भेड़-बकरिंयाँ काँटों की बाड़ कब देखतीं हैं
हवा कैसी खतरनाक क्या हवाला देना
फिर कोई खसखस के दाने सा होकर भी
‘वट’ बना लेता है, मुस्तैद तो होगा
अपनी देह को ही सुन लो ‘री आत्मा
करते ही छेड़-खानी नाक, आँख
दे छोड़ पानी,
कितनी मुस्तैद
कितनी, चौकन्नी
क्या, अपनी जिन्दगानी
सो सजगता चुन लो
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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