सवाल
आचार्य भगवन् !
बड़ी मतलबी दुनिया है,
भगवान् ! क्या कोई यहाँ
मतलब साधे बिना भी काम करता है,
आपकी नजर में
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
तार सितार सरगम घोलते हैं,
कोई छेड़ता तो,
हा ! हाय ! हम खौलते हैं
बस बटन दबाना
चलने के मामले में ‘फेन’ करते न कभी बहाना
चिड़िया अनूठा संगीत सुनाती
अब लेती पैसे
नदिया मीठा पानी पिलाती
बादल बरस चले,
दो प्रशंसा बोल सुनने, खड़े कब रहते
धरती ने हीरे मोती उगले, हर-बोल कहते
भाई नाक से बोझ हटाईए,
और आंख अपनी, अपनी नाक से सटाईये
दूध का दूध,
पानी का पानी हो चलेगा
‘मैं’ को छोड़ सभी निस्वार्थी
बस निःश्वास अर्थी
अर्थात्
ली श्वास घड़ी की चाल ले छोड़ने में लगे हैं
‘मर…हम मरहम बनें’
इस सहजो-निराकुल भावना से पगे हैं
किसी की मति बनाने हंसी
गुद करके
कागज
घिस करके
कलम ने करा ली अपनी हँँसी
खा रहे धूप,
खिला रहे छाया
वृक्षों को ढ़ाई आखर
पढ़ना खूब आया
चाराना का चारा खाया
गाय ने बेहिसाब लौटाया
सारी की सारी प्रकृति
भगवान् की ही प्रतिकृति
आ… मतलब से हटके
कुछ करने की पहल करके बनते सन्त-सती
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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