सवाल
आचार्य भगवन् !
आपके लिये दाँतों की असहनीय तकलीफ से होकर गुजरना पड़ा,
क्या कारण रहा ?
आपने उसे समता का परिचय देते हुए सहन किया,
क्या सोचते थे आप,
उस असाता वेदनीय कर्म के उदय के काल में ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
‘एक दन्त’ तो बनना ही था
कब तक बचता मैं
और तो और
दो के पहले
तीन को पार करना था
दो के बाद तीन तो
बाँये हाथ का खेल
वैसे था निकलना ही तेल
गण-ईश जो हूँ
और हम ही नहीं समझे
वास्तविक दरद तो
दाँतों का ही होता है
इसे सार्थक नाम दिया है जमाने ने
‘द’ (The)…रद
रद यानि ‘कि दन्त
आ…बन सके बनते
‘दरद-मन्द’
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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