सवाल
आचार्य भगवन् !
जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं
गिरगिट को भी रंग बदलने की विधा में पीछे छोड़ चले जाते हैं,
और भगवान् !
जुवाँ होते होते, हम इतने फिजाओं में
विष घोलने वाले क्यों जाते हैं
और इससे कैसे बचें
कुछ उपाय सुझाईये
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये
छिद्र दर्शन यदि किसकी का काम है
तो उसमें आता जुबाँ का पहला नाम है
दाँत टूटते ही
होता पर्दाफाश
खुल पड़ता है राज
और रखता है
सार्थक नाम शब्द बच्चा
जो इस कला से बचा है
‘रे भाई और कहना ही क्या
‘विरध’ का विरद अनूठा है
इन्होंने अनुभव से सीखा है
‘के पलकें, पल…के लिये खोलो
सुनते हैं,
बोल भी रखते हैं वजन
बोलने से पहले तोलो
सिरफ सरफ की नहीं
दो उसको भी जुबान,
जिसकी कतरनी
चाहिये फलक अब और यक
मुख में रहते-रहते मुख से निकल रही
जुबान,
यानि ‘कि मुख से बड़ी
हाय राम ! और आती सिर्फ
छर्दी खेंचने के काम
उदाहरण श्वान
मेरी दो, ज्यादा से ज्यादा
तो चार आंखें
मेरी ओर हजार आंखें
रखना ध्यान घड़ी घड़ी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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