सवाल
आचार्य भगवन् !
आपका आहार चालू नहीं हो पाता है
और आप हथेली पर अँगुली रख कर
इशारा करने लगते है
‘कि ‘सौंप
भगवन् मानते हैं,
मुख शुद्धि के लिये आवश्यक होती है सौंप
सौंप देंगे श्रावक-जन
इतनी जल्दी भी क्या रहती है आपको
हमारा दिल तो भर जाने दिया कीजिए
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
चूहा बन्धुआ मजदूर बन के भी
न ‘कि सिर्फ रात दिन एक करके ही
बिल नहीं भर पाता है
और बिल्ला धमक आता है
सुनिये,
हमारे पूर्वजों ने देर मंथन करने के बाद
ये नवनीत निकाला है
‘के आगुन्तक अपनी नाक भी बचा ले
और खाली पेट अपने घर भी न लौट चाले
इसलिये वह कहता सौंप
सामने वाला भी अपनी नाक बचाने सौंप न
देते हुये भोग छप्पन, सौंपता रहता है
आगुन्तक नो… नो… नो… कहते हुए
आकण्ठ तर हो जाता है,
तब कहता, अब बस भी कीजिए
सौंप भी मत दीजिये
जगह ही नहीं रही खाली,
मैं कब से सौंप मँगा रहा हूँ
और आप है ‘कि
साफ-साफ मना भी नहीं करते हैं
और दोनों इस प्रकार लाज रख लेते हैं
लेकिन आप लोग मेरे साथ अच्छा नहीं कहते हैं
मुझे आगम ने
तिहाई पेट खाली छोड़ने के लिये कहा है
और इसी एक तिहारी के समय
आप लोग छेड़-छाड़ करते हैं
फिर जमाना कहता है,
महाराज को चीजें कुछ ज्यादा नहीं चलतीं हैं,
बस जबरदस्ती चलती है
सो सुनो,
इतना वात्सल्य परोसा जाये
‘कि वात की शस्य न पैर जमा पाये
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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