सवाल
आचार्य भगवन् !
रात मेरे सपने में आप आये थे
आपका समोशरण लगा हुआ था
उसमें एक पत्र पढ़ा जा रहा था
जो एक ग्रामीण भाई ने
अपने शहरी भाई के नाम लिखा था
भगवान् मैं भूल चला हूँ, आपको तो याद होगा
कृृपया कृपा कीजिए
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
दीया…चिठिया
घर आने में हो जायेगी आज मुझे देर
बस इतना क्या सुना
तुम अकेले खाना खाने बैठ गये
लानत है तुम पर
अरे बाबा नहीं दुख रहे हैं मेरे पैर
बस इतना क्या सुना
तुम तुरन्त उठ करके आ, अपने बिस्तर पर लेट गये
लानत है तुम पर
छोटे नहीं रहे, अब तुम हो गये हो बड़े
बस इतना क्या सुना
तुम अपने फैसले खुद अकेले लेने लग गये
लानत है तुम पर
हाँ… हाँ… रह लेंगें हम तुम्हारे बग़ैर
बस, इतना क्या सुना
तुम आ करके परदेश में रहने लग गये
लानत है तुम पर
तुम पापा को पहचान ही नहीं पाये
ठण्डी में गुनगुनी धूप पापा
गर्मी में मीठे ठण्डे पानी के कूप पापा
छतरी है पापा बरसात में
हे भगवन् !
मेरी तो बस एक यही प्रार्थना है
ताउम्र मैं रहूँ अपने पापा के साथ में
हाईकू
है फूल भी न सच्चे,
कह कैसे दूँ शहर अच्छे ।
खूब कमाया
हाथ कुछ न आया
शहर माया ।
शहर कहाँ मुड़ेरे काँव काँव,
न छोड़ो गाँव ।
वादों के पक्के हैं
घर भले कच्चे हैं, गाँव अच्छे है ।
झूठे भगवत् भोग,
लोग सच्चे हैं,
गाँव अच्छे है ।
आ जाते साँझ-साँझ घर बच्चे हैं
गाँव अच्छे है ।
खुद ही कही ‘चेन…नई’
क्यों भागे जा रहे भई ।
देता पैगाम पान…दे’व…’री’
एक गाँव का नाम ।
सच
झोपड़ी जो पढ़ी कक्षा दूसरी
बंगला…
बगुला
झाँकते बनता जिससे सिर्फ बगलें
अपना गाँव भला
लगा सीने में तमगा
यथा नाम तथा गुण
शुभ शगुन बोले गाँव वाले तम Go
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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