सवाल
आचार्य भगवन् !
ये जीजी की पाँत तो खत्म ही नहीं होती है,
हर साल आप दादा गुरुदेव ज्ञान सागर जी के
समाधि दिवस पर
प्रतिभा मण्डल का प्रवेश द्वार खोलते हैं
जाने
आप क्या समझाते हैं
‘कि भौतिकता की चकाचौंध
इन पढ़ी लिखी बच्चिंयों की आंखें
चकचौंधिंया नहीं पाती है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
अरे भाई मैं तो बस इतना कहता हूँ
‘के चाची का किरदार
मम्मी का किरदार
दादी और नानी का किरदार
सारे किरदार फीके हैं
एक जीजी के किरदार के आगे
आ जीजी बने
जो भी पुकारेगा तो कम से कम
दो बार तो दुआ देगा ही
‘के ओ जी-जी
और यूँ ही न हो चलता नाम करण
कह चाली होगी इक सुर से जनता जनार्दन
जै… जै… जै
उठाये होंगे बीड़े,
फिर फिर के बेड़े पार भी लगाये होंगें
तभी तो जश कमाया है
लेकिन पूर्वजों ने पीछे ‘न’ लगाकर
यह भी बताया है
‘के लौकिक जै, जय नहीं है
पारलौकिक जै के लिए हमेशा
कमर बाँधे रहो
उठो चलो
और कृपा गुरुदेव की
और बच्ची अनुचर हो चालती पुरुदेव की
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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