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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -191

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
जर्रा सा नमकीन
थोड़ा सा पापड़ तो भोजन के
साथ अच्छा रहता है
लेकिन आप लेते ही नहीं,
भगवन्, पेट अच्छे से भर जाता है,
हर दिन दाल, रोटी, चावल, लेते-लेते
आपका मन नहीं ऊब जाता
थोड़ा हिसाब से ले लिया कीजिए,
पर ले तो लिया कीजिए
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
हिसाब का साब जानें,
मैं हो बस इतना जानता हूॅं
‘के किताब से जरूर,
बहुत कुछ लिया जाता है

और कौन-कौन नहीं कहता
भीम कहता
हकीम कहता
अरे ! कोन कोन यही कहता
पर दीवाल से हटें कान तब ना
‘के भरे,
खाने, ‘खाने’
चारों चित्त
समझो
‘भी’ मित्र

चाहत
च यानि ‘कि
जिसका कुछ-कुछ लटका सा पेट
बहुत-कुछ मटका सा पेट
सीधा-साधा मतलब है
और-और चाह रखता सा पेट
उसे आहत करना है
न ‘कि देवी तृष्णा की इबादत करना है

नमकीन आँसू
हो सामने गैर या अपना
हिसाब ‘किताब’ रखना
यानि ‘कि
साथ में, हिसाब रख सकें जिसमें ऐसी
भले छोटी सी
रखना किताब
ओ ! बाबू साब

‘दे…बता’
कितना लेना
पापड़
‘शब्द’
पापा पूरा
‘पा’…पा आधा ले लो
यदि ‘प’ और बोलो,
तो…
पौन ले लो
पर मत कर देना गौण
निश्चित… सुनिश्चित हुआ
पाप होना

आहा !!!
रट लगा, चटखारे लेते हुये
सिर्फ जीमते ही मत जाना
जी मचलाने से पहले ‘मत’ जगाना
‘के
हमनें भले भुलाया है
हमें गया बुलाया है
यह कह के
आ…हार-थक गया हो तो
‘ओ ! ‘सो’ समझो भी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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