- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 978
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।स्थापना।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं गंगा-जल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।जलं।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं गंध सजल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।चन्दनं।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं धान धवल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।अक्षतं।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं नवल कँवल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।पुष्पं।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं चरु चावल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।नैवेद्यं।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं दीप अचल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।दीपं।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं गंध सकल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।धूपं।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं मधुरिम फल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।फलं।।
क्यूँ न भेंटूँ, भेंटूँगा मैं द्रव्य अखिल
दिये कीमती मेरे गुरु ने,
मुझको अपने पल
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरा माथा करे गगन से बात है
अब क्या ? अब तो,
सुख-साता दिन रात है
मेरे सर पर, मेरे गुरु का हाथ है ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
जय गुरुवर, जय गुरुवर
जयतु जयतु, जय जय गुरुवर
मेरे गुरु का हाथ है, मेरे सर पर
जय गुरुवर, जय गुरुवर
जयतु जयतु, जय जय गुरुवर
जयमाला
मोह निद्रा से जगा के
मेरे छोटे बाबा ने मुझे
आज दर्शन दिये
मेरे सपने में आ के
हूँ शुक्र-गुजार, अपने छोटे बाबा का
मैं कर्जदार, अपने छोटे बाबा का
प्यार-दुलार, मिलता रहे
यूँ ही दीदार, मिलता रहे
यही प्रार्थना माथ झुका के
मेरे सपने में आ के
मोह निद्रा से जगा के
मेरे छोटे बाबा ने मुझे
आज दर्शन दिये
मेरे सपने में आ के
हूँ शुक्र-गुजार, अपने छोटे बाबा का
मैं कर्जदार, अपने छोटे बाबा का
मिलती सफलता रहे
हृदय कमल खिलता रहे
यही प्रार्थना माथ झुका के
मेरे सपने में आ के
मोह निद्रा से जगा के
मेरे छोटे बाबा ने मुझे
आज दर्शन दिये
मेरे सपने में आ के
हूँ शुक्र-गुजार, अपने छोटे बाबा का
मैं कर्जदार, अपने छोटे बाबा का
मिलता रहे भीतर सुकूँ
न मुरझाये भक्ति प्रसूँ
यही प्रार्थना माथ झुका के
मेरे सपने में आ के
मोह निद्रा से जगा के
मेरे छोटे बाबा ने मुझे
आज दर्शन दिये
मेरे सपने में आ के
हूँ शुक्र-गुजार, अपने छोटे बाबा का
मैं कर्जदार, अपने छोटे बाबा का
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
विश्व पूरे न निरा’कुल ‘इनसां’
वे पूरें मन्शा
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