- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 959
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।स्थापना।।
चलो चढ़ा आते जल स्वर्ण घड़े
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।जलं।।
चलो चढ़ा आते घट गंध भरे
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।चन्दनं।।
चलो चढ़ा आते धाँ शालि निरे
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।अक्षतं।।
चलो चढ़ा आते गुल नन्द खिले
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।पुष्पं।।
चलो चढ़ा आते नैवेद्य नये
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।नैवेद्यं।।
चलो चढ़ा आते घृत दीप जगे
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।दीपं।।
चलो चढ़ा आते दश गंध घड़े
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।धूपं।।
चलो चढ़ा आते फल स्वर्ग फरे
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।फलं।।
चलो चढ़ा आते सब दरब मिले
अपनाने,
जिस किसी को भी अपनाने,
बाँहें फैलाकर खड़े
श्री गुरु विद्या सागर जी दयालु बड़े
‘रे ! बहना…ओ ! भाई
ऐसी अलख जगाई
श्री गुरु विद्या सागर जी ने
ऐसी अलख जगाई
पीछे-पीछे,
सारी दुनिया, भागी-भागी आई ।।अर्घ्यं।।
कीर्तन
जय जयतु , जय जय-विद्या
जय-विद्या
जय-विद्या
जय-विद्या
जय जयतु , जय जय-विद्या
जयमाला
डंका बाज रहा
स्वर्ग अन्त तक
दिग्-दिगन्त तक गाज रहा
दया पन्थ का,
डंका बाज रहा
दरद मन्द का
कृपा वन्त का
सुत श्री-मन्त का,
डंका बाज रहा
छव गुरु कुन्द-कुन्द झलकी
करुणा आँखों से छलकी
शिल्प गुरु ज्ञान सिन्ध का
दया पन्थ का
डंका बाज रहा
डंका बाज रहा
स्वर्ग अन्त तक
दिग्-दिगन्त तक गाज रहा
दया पन्थ का,
डंका बाज रहा
दरद मन्द का
कृपा वन्त का
सुत श्री-मन्त का,
डंका बाज रहा
बाँहें रहती हैं फैली
सभी मण रत्न एक थैली
ज्योति इक जुदा दीपिका
दया पन्थ का,
डंका बाज रहा
डंका बाज रहा
स्वर्ग अन्त तक
दिग्-दिगन्त तक गाज रहा
दया पन्थ का,
डंका बाज रहा
दरद मन्द का
कृपा वन्त का
सुत श्री-मन्त का,
डंका बाज रहा
परणत देख दुखी रो दी
बच्चों पे कुरबां गोदी
मोति समर्पण सीप का
दया पन्थ का,
डंका बाज रहा
डंका बाज रहा
स्वर्ग अन्त तक
दिग्-दिगन्त तक गाज रहा
दया पन्थ का,
डंका बाज रहा
दरद मन्द का
कृपा वन्त का
सुत श्री-मन्त का,
डंका बाज रहा
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
बस,
अपने चरणों में
बिठाय रखियेगा ‘जी
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