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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 958

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 958

रोते किसी को भी, देख सकते ही नहीं
रहम दिल इतने हैं
नैन नम रखते हैं
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।स्थापना।।

गंगा जल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
गंगा जल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।जलं।।

जल संदल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
जल संदल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।चन्दनं।।

धाँ उज्ज्वल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
धाँ उज्ज्वल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।अक्षतं।।

नवल कँवल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
नवल कँवल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।पुष्पं।।

चरु दिव-थल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
चरु दिव-थल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।नैवेद्यं।।

लौं अविचल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
लौं अविचल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।दीपं।।

गन्ध अनल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
गन्ध अनल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।धूपं।।

मिसरी फल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
मिसरी फल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।फलं।।

द्रव्य सकल
क्यूँ न चढ़ाऊँगा
मैं तो चढ़ाऊँगा दृग् सजल
द्रव्य सकल
गैरों में किसी को भी, रखते ही नहीं
मेरे गुरु जी
रोते किसी को भी,
देख सकते ही नहीं ।।अर्घ्यं।।

कीर्तन
जय विद्या-सागर जय
जय विद्या-सागर जय
जय विद्या-सागर, विद्या-सागर, विद्या-सागर जय

जयमाला
रँग केशरिया लगा दो
रँग केशरिया लगा दो
रँग केशरिया लगा दो
अपने रँग में रँगा लो
अपने रँग में रँगा लो
रँग केशरिया लगा दो

लाजो शरम से हैं रीती आँखें
दोष पराये चला करके ताँकें
कुछ सिखा दो इन्हें
कुछ सिखा दो इन्हें
ये गिरेवान जर्रा अपना भी झाँकें
लाजो शरम से हैं रीती आँखें
जय, जयतु जय गौरव सदलगा ओ !
अपने रँग में रँगा लो

रँग केशरिया लगा दो
रँग केशरिया लगा दो
रँग केशरिया लगा दो
अपने रँग में रँगा लो
अपने रँग में रँगा लो
रँग केशरिया लगा दो

काबू कहाँ मेरा अपनी जुबां पर
रक्खा ही रहता है बोझ नासिका पर
सूरज निकल आया कहके जगा दो
जय, जयतु जय गौरव सदलगा ओ !
अपने रँग में रँगा लो

रँग केशरिया लगा दो
रँग केशरिया लगा दो
रँग केशरिया लगा दो
अपने रँग में रँगा लो
अपने रँग में रँगा लो
रँग केशरिया लगा दो

पापों के रँग में रँगे हाथ म्हारे
चिट्ठे क्या खोलूँ, हा ! परिणाम काले
पाँव अँधेरे जमे, डगमगा दो
जय, जयतु जय गौरव सदलगा ओ !
अपने रँग में रँगा लो

रँग केशरिया लगा दो
रँग केशरिया लगा दो
रँग केशरिया लगा दो
अपने रँग में रँगा लो
अपने रँग में रँगा लो
रँग केशरिया लगा दो
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

हाईकू
बस,
अपनी कृपा दृष्टि बनाए
रखियेगा ‘जी

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