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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 889

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 889

तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मुलाकात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मुलाकात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।स्थापना।।

चढ़ाऊँ जल, नद गंग घाट
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।जलं।।

भेंटूँ चंदन घिस हाथ-हाथ
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।चन्दनं।।

भेंटूँ धाँ शालि मण-परात
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।अक्षतं।।

भेंटूँ गुल, नमेर, पारिजात
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।पुष्पं।।

भेंटूँ घृत नवेद भाँत-भाँत
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।नैवेद्यं।।

जगाऊँ दीप कर्पूर-बात
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।दीपं।।

भेंटूँ गंध कस्तूर ख्यात
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।धूपं।।

भिंटाऊँ रित-रित फूल-पात
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।फलं।।

चढ़ाऊँ जल फल गंध आद
रही बाकी न कोई मुराद
तुमसे मिलने के बाद
करनी क्या मन की बात
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को
कहाँ बेदाग वो
करनी क्या मुलाकात
तुमसे मिलने के बाद
चाँद से, कहाँ बेदाग वो
तले अँधेरा करे परेशां, चिराग को ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
गुरु झोपड़ी लें छू जिसकी,
छड़ी जादू उसकी

जयमाला
माँ श्रीमति बड़भाग

निशाँ न अँधियारा ।
शरद पून वाला ।।
गोद चाँद बेदाग |
माँ श्री मति बड़भाग ॥

मुख अमरित झरता ।
देख न मन भरता ।।
उमड़े इक अनुराग ।
माँ श्री मति बड़‌भाग ।।

निशाँ न अँधियारा ।
शरद पून वाला ।।
गोद चाँद बेदाग |
माँ श्री मति बड़भाग ॥

कला मनोहारी ।
दर्श-मात्र, हाँ ‘री ।।
मनी दिवाली-फाग ।
माँ श्री मति बड़भाग ।।

निशाँ न अँधियारा ।
शरद पून वाला ।।
गोद चाँद बेदाग |
माँ श्री मति बड़भाग ॥
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
न हिमाचल विराट,
हैं जितना गुरु ललाट

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