- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 886
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।स्थापना।।
भिंटाऊँ गंगा जल
‘के पाऊँ आप सा कल
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।जलं।।
भिंटाऊँ घट मलय रज
‘के पाऊँ लेख रेख-गज
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।चन्दनं।।
भिंटाऊँ दाने अछत,
‘के पाऊँ पाँत तुम भगत
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।अक्षतं।।
भिंटाऊँ श्रद्धा सुमन
पाऊँ पुन पड़गाहन
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।पुष्पं।।
भिंटाऊँ चरु चारु घृत
‘के पाऊँ आप वचनामृत
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।नैवेद्यं।।
जगाऊँ ज्योत अबुझ
‘के पाऊँ भीतर समझ
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।दीपं।।
भिंटाऊँ सुगंध इतर
‘के पाऊँ आप इक नजर
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।धूपं।।
भिंटाऊँ रित फल सरस
‘के पाऊँ आप सा जश
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।फलं।।
भिंटाऊँ द्रव्य वस विध
‘के पाऊँ समाँ आप निध
ना निराश कीजिये
‘जि आ वास कीजिये
लाये,
अभिलाष ये
हमें कुछ और पास से,
तोर दर्शन हो जायें
मोर भगवन् !
हो जायें हम, कुछ और खास-से
तोर दर्शन हो जायें,
हमें कुछ और पास से ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
अपने हाथ में,
ले हाथ लो मेरा,
श्याम अँधेरा
जयमाला
ऐ ‘जि ! प्रात न आये
कोई ऐसी रात न जाये
जब तुम्हारी याद न आये
गुरु जी,
है अब प्रार्थना ये
जो हुये हो रूबरू,
तो रख लो पैरों में
सही, बना के ही घुँघरू
ऐ ‘जि ! प्रात न आये
कोई ऐसी रात न जाये
जब तुम्हारी याद न आये
जो हुये हो रूबरू
कुसुम मैं,
अय ! मेरी खुशबू
जिसम मैं,
अय ! मेरी रूह
जो रख लो अपने अनुचरों में
‘के ऐसा मैं क्या करूँ
गुरु जी,
है अब प्रार्थना ये
जो हुये हो रूबरू,
तो रख लो पैरों में
सही, बना के ही घुँघरू
ऐ ‘जि ! प्रात न आये
कोई ऐसी रात न जाये
जब तुम्हारी याद न आये
जो हुये हो रूबरू
हूँ पतंग मैं, है ड़ोर तू
तू चन्द्रमा, मैं चकोर हूँ
कुसुम मैं,
अय ! मेरी खुशबू
जिसम मैं,
अय ! मेरी रूह
जो रख लो अपने अनुचरों में
‘के ऐसा मैं क्या करूँ
गुरु जी,
है अब प्रार्थना ये
जो हुये हो रूबरू,
तो रख लो पैरों में
सही, बना के ही घुँघरू
ऐ ‘जि ! प्रात न आये
कोई ऐसी रात न जाये
जब तुम्हारी याद न आये
गुरु जी,
है अब प्रार्थना ये
जो हुये हो रूबरू,
तो रख लो पैरों में
सही, बना के ही घुँघरू
जो रख लो अपने अनुचरों में
‘के ऐसा मैं क्या करूँ
ऐ ‘जि ! प्रात न आये
कोई ऐसी रात न जाये
जब तुम्हारी याद न आये
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
सोचें भलाई सब की,
परछाई गुरु रब की
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