- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 879
=हाईकू=
जिया-बगिया,
देख रोजाना तुझे खिलती रहे ।
यूँ ही मुस्कान तेरी,
रोजाना मुझे मिलती रहे ।।
और कुछ न चाहते बस,
मुझे मत भुलाना ।
आज के जैसे घर रोजाना मेरे,
‘कि चले आना ।।स्थापना।।
है तू ही सिर्फ मेरा
जल झारी रतनारी
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।जलं।।
है तू ही सिर्फ मेरा
दिव क्यार ‘द्रव’ झारी
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।चन्दनं।।
है तू ही सिर्फ मेरा
मण थाल धाँ शाली
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।अक्षतं।।
है तू ही सिर्फ मेरा
फुल माल मनहारी
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।पुष्पं।।
है तू ही सिर्फ मेरा
चरु न्यार घृत वाली
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।नैवेद्यं।।
है तू ही सिर्फ मेरा
दृग्-हार दीवाली
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।दीपं।।
है तू ही सिर्फ मेरा
मनहार गंधा ‘ई
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।धूपं।।
है तू ही सिर्फ मेरा
रतनार फल थाली
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।फलं।।
है तू ही सिर्फ मेरा
जुग चार द्रव सारी
लो ये स्वीकार हमारी
दुनिया अंधेरा,
एक तू बस सबेरा
है तू ही सिर्फ मेरा ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
खा धोखे,
‘बार-बार’
दे मौके,
‘गुरु’
निस्वार्थ होके
जयमाला
आप सारीखा
कर लीजो
गुरु जी ओ !
जुबाँ का मीठा
होगा काफी ये मुझे
जब तलक ‘कि दीप बुझे
हल्का,
श्री मुख अपने सुधा झलका
कर लीजो
गुरु जी ओ !
आप सारीखा
कर लीजो
गुरु जी ओ !
जुबाँ का मीठा
होगा काफी ये मुझे
जब तलक ‘कि दीप बुझे
हल्का,
मेरे सिर का बोझा सरका
कर लीजो
गुरु जी ओ !
आप सारीखा
कर लीजो
गुरु जी ओ !
जुबाँ का मीठा
होगा काफी ये मुझे
जब तलक ‘कि दीप बुझे
हल्का,
दृग् बना झरना, दया जल का
कर लीजो
गुरु जी ओ !
आप सारीखा
कर लीजो
गुरु जी ओ !
जुबाँ का मीठा
होगा काफी ये मुझे
जब तलक ‘कि दीप बुझे
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
‘जी’ में ठण्डक सी पाते सभी,
छाँव-गुरु आते ही
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