परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 88
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।स्थापना।।
सोने की गागर ।
नीर क्षीर सागर ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।जलं।।
सोने की गागर ।
चन्दन मलयागिर ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।चन्दनं।।
सोने की पातर ।
चावल मुक्ताफल ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।अक्षतं।।
सोने की पातर ।
पुष्प गंध आगर ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।पुष्पं।।
सोने की पातर ।
चरु घृत पकाकर ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।नेवैद्यं।।
सोने की पातर ।
ज्योत घृत जगाकर ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।दीप॑।।
सोने की पातर ।
गंध दश सजाकर ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।धूपं।।
सोने की पातर ।
फल सर झुकाकर ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।फल॑।।
सोने की पातर ।
द्रव्य दिव्य लाकर ।
सादर चढ़ाऊँ, ले भावन शिव धाम ।।
धरती के देवता प्रणाम ।
अवतार सदलगा ग्राम ।।
पूर्णिमा शरद अभिराम ।
धरती के देवता प्रणाम ।।अर्घं।।
“दोहा”
सत्-शिव-सुन्दर, शान्त जे,
सहज, सरल, अविकार ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें,
नमन अनन्तों बार ॥
“जयमाला”
आ भी जाओ ना,
अब आ भी जाओ ना ।।
है होने को पूरा, एक अरसा गुरुजी ।
हुई न सहजो दया की बरसा गुरुजी ।।
गंगा और जमुना ।
बन चले है ये मेरे नयना ।।
आ भी जाओ ना,
अब आ भी जाओ ना ।।
तुम्हें याद करे ।
घर का मेरे ।
कोना कोना,
आ भी जाओ ना ।।
‘के सूना सूना,
तुम्हारे बिना,
घर का मेरे, कोना-कोना ।।
आ भी जाओ ना,
अब आ भी जाओ ना ।।
झड़ के पेड़ों के पत्ते मुस्कुराये फिर से ।
तुम गये ‘कि ‘बस गये’ मुड़ के न आये फिर से ।।
है होने को पूरा एक अरसा गुरुजी ।
हुई न सहजो दया की बरसा गुरुजी ।।
आ भी जाओ ना,
अब आ भी जाओ ना ।।
आने लगा, काली दो रात बीच, एक दिन ।
सताने लगा, चिड़िया न तितली ये अकेलापन ।।
है होने को पूरा एक अरसा गुरुजी ।
हुई न सहजो दया की बरसा गुरुजी ।।
आ भी जाओ ना,
अब आ भी जाओ ना ।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
गुरु से कब कहनी पड़ी,
अपने मन की बात ।
मनो-कामना आप ही,
लगे दीखती हाथ ॥
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