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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 862

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 862

तेरे अपनों में आके
तुझे सपनों में पाके
मैंने जन्नत ही पा ली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।स्थापना।।

साथ रोमिल पुलक,
क्यूँ न भेंटूँ उदक लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।जलं।।

साथ गदगद हृदय
क्यूँ न भेंटूँ रज मलय, लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।चन्दनं।।

साथ मिसरी जुबां
क्यूँ न भेंटूँ शालि धाँ, लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।अक्षतं।।

साथ अनबुझ लगन,
क्यूँ न भेंटूँ दिव सुमन, लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।पुष्पं।।

साथ थिरकने सहज,
क्यूँ न भेंटूँ नेता, लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।नैवेद्यं।।

साथ सुर लहरी,
क्यूँ न भेंटूँ दीव घी, लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।दीपं।।

साथ श्रद्धा सुमन
क्यूँ न भेंटूँ गंध अन लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।धूपं।।

साथ लोचन सजल
क्यूँ न भेंटूँ श्रीफल, लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।फलं।।

साथ जयतु निनाद
क्यूँ न भेंटूँ जल फलाद लाके
मनाऊँ रोज दीवाली
सोई किस्मत जगा ली
तुझे सपनों में पाके
तेरे अपनों में आके
मैंने जन्नत ही पा ली ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
अनायास ही,
पा जाते गुरु कृपा से रास्ता सही

जयमाला
थे आये ही नजर में
समाये ‘कि जिगर में
तुम कौन हो क्या हो
क्यों मौन हो बता दो

चित्-चोर से लगते हो
चाँद और से लगते हो
अपना कुछ तो पता दो
क्यों मौन हो बता दो

थे आये ही नजर में
समाये ‘कि जिगर में
तुम कौन हो क्या हो
क्यों मौन हो बता दो

कहीं तुम कोहनूर तो नहीं
थी जिसकी मुझे तलाश,
वो मुझ मृग के अपने खास
कहीं तुम कस्तूर तो नहीं

चित्-चोर से लगते हो
चाँद और से लगते हो
अपना कुछ तो पता दो
क्यों मौन हो बता दो

थे आये ही नजर में
समाये ‘कि जिगर में
तुम कौन हो क्या हो
क्यों मौन हो बता दो

क्या तुम्हारा कोई जन्नत से नाता है
ये चेहरे से जो नूर झलकता है
तुम कुछ कहो या न कहो
ये खुदबखुद बतलाता है

चित्-चोर से लगते हो
चाँद और से लगते हो
अपना कुछ तो पता दो
क्यों मौन हो बता दो

थे आये ही नजर में
समाये ‘कि जिगर में
तुम कौन हो क्या हो
क्यों मौन हो बता दो
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
‘जि चादर हो रही दुरंगी,
कर दो सतरंगी

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