परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 85
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।स्थापना।।
नीर पातर बड़े ।
क्षीर सागर भरे ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।जलं।।
धार, चन्दन घुरी ।
झार मण सुनहरी ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।चन्दनं।।
न्यार धाँ-शालिका ।
थाल मण माणिका ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।अक्षतं।।
नन्द वन पाँखुड़ी ।
गन्ध मन हारिणी ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।पुष्पं।।
विनिर्मित घृत अभी ।
भोग छप्पन सभी ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।नेवैद्यं।।
दीपिका ज्योतिका ।
सीपिका मोक्तिका ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।दीप॑।।
धूप घट सुनहरा ।
गंध हर मनहरा ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।धूपं।।
गंध मन-हर झिरे ।
नन्द-वन फल निरे ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।फल॑।।
दिव्य मनु हारिंयाँ ।
द्रव्य वसु थारिंयाँ ।।
भेंट सानन्दना |
श्री-मन्त नन्दना ।।
वन्दना वन्दना वन्दना ।
सुलोचन दृढ़ मना ।
शिरोमण मुन गणा ।।
श्री-मन्त नन्दना ।
वन्दना वन्दना वन्दना ।।अर्घं।।
“दोहा”
दुखहारी गुरु देव हैं,
सुखकारी गुरु देव ।
उपकारी गुरु देव हैं,
वन्दन नंत सदैव ।।
“जयमाला”
आरती कीजे बारम्बार ।
थाल दीपों की ले रतनार ।।
छोड़ जीरण तृण-वत् घर बार ।
हाथ घुंघर-लट श्याह उतार ।।
चले वन जोवन वस्त्र उतार ।
सुमन ले सांची श्रद्धा चार ।।
थाल दीपों की ले रतनार ।
आरती कीजे बारम्बार ।।१।।
साधते संध्या भीतर डूब ।
ज्ञान धन कण्ठी अण्ठी खूब ।।
चले, आ चले न सत्-पथ दूब ।।
खुशी से भर लोचन जलधार ।
सुमन ले सांची श्रद्धा चार ।।
थाल दीपों की ले रतनार ।
आरती कीजे बारम्बार ।।२।।
साधना वृक्ष मूल चौमास ।
ग्रीष्म तप आतप आया रास ।।
तुसारी रात अभ्र अवकाश ।
अखर लौं भक्ति जगा, हित-पार ।
खुशी से भर लोचन जल धार ।
सुमन ले सांची श्रद्धा चार ।।
थाल दीपों की ले रतनार ।
आरती कीजे बारम्बार ।।३।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा=
श्री गुरु के दरबार की,
बड़ी अनोखी बात ।
कभी सवाली द्वार से,
जाये न खाली हाथ ॥
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