परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 817धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।स्थापना।।बनने धीर-गंभीर
प्रासुक गंगा नीर
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।जलं।।बनने अधिपति मोख
चन्दन मलय अनोख
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।चन्दनं।।बनने दया निधान
सुरभित शालिक धान
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।अक्षतं।।बनने व्रत-शशि-पून
नन्दन बाग प्रसून
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।पुष्पं।।बनने रसिक विवेक
घृत निर्मित चरु नेक
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।नैवेद्यं।।बनने दृग्-अविकार
ज्योत अबुझ दृग्-हार
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।दीपं।।बनने वधु-शिव कन्त
दश मन-हार सुगंध
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।धूपं।।बनने दिव सिर-मौर
वन-नन्दन फल-और
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।फलं।।बनने सज्जन साध
सबरी द्रव्य परात
भेंटूँ साथ विनय
जयतु जयतु जय जय
धर्म अहिंसा नूर
मन्शा सहज प्रपूर
जयतु जयतु जय जय
विद्या सागर सूर ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
न फिसलते,
पीछे-पीछे जो गुरु जले चलतेजयमाला
शामिल सत्संग में
रँगे जो गुरु रंग में
क्या कहना उनका,
सारा जहां उनकाहंस वे,
अब बाँसुरी,
थे पहले वंश वे
वशीभूत मन उनका
मिला मीत उनको मन का
क्या कहना उनका,
सारा जहां उनकादिया-बाती वे
अब सुराही,
थे पहले माटी वेसाँच वे
अब हैं आदर्श,
थे पहले काँच वे
शामिल सत्संग में
रँगे जो गुरु रंग में
क्या कहना उनका,
सारा जहां उनका
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
अजि ! सिर्फिक ये अर्जी,
भुलाईये भूलें गुरु जी
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