- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 814
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।स्थापना।।
बिठा अपने दृग् पथ तुम्हें
भिंटाता हूँ जल घट तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।जलं।।
भिजाता हूँ वन्दन तुम्हें
भिंटाता हूँ चन्दन तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।चन्दनं।।
मान सुन्दर शिव सत् तुम्हें
भिंटाता हूँ अक्षत तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।अक्षतं।।
मान अपनी मंजिल तुम्हें
भिंटाता हूँ लर गुल तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।पुष्पं।।
मान अपना कुल गुरु तुम्हें
भिंटाता हूँ घृत चरु तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।नैवेद्यं।।
लगा झिर दृग् मोती तुम्हें
भिंटाता हूँ ज्योती तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।दीपं।।
मान अपना सब कुछ तुम्हें
भिंटाता हूँ सौरभ तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।धूपं।।
बिठाता पलकों पर तुम्हें
भिंटाता हूँ श्री फल तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।फलं।।
मान के अपना रब तुम्हें
भिटाता द्रव सब तुम्हें
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
तेरे ख्यालों में खोये रहते है हम
अपनी आँखें भिंजोये रहते है हम
हरदम,
दर कदम,
जब देखो तभी,
‘जि गुरु जी
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं
तुम्हारे सिवा मेरे दिल में,
कोई और रहता नहीं
कहता यही रोंआ-रोंआ,
सिर्फ मैं ही कहता नहीं ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
जानें सभी के मन की,
कक्षा दूजी, पढ़े गुरुजी
जयमाला
चाहो, न चाहो, गुरु जी चाहे, हमें तुम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
हरदम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
मछली को जल की नहीं उतनी जरूरत
हमें आपकी है गुरु जी जितनी जरूरत
दर-कदम
हरदम,
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
चाहो, न चाहो, गुरु जी चाहे, हमें तुम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
हरदम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
चाँद-चकोरे को न उतना जरूरी
हाथ तेरा सर पे मेरे, जितना जरूरी
दर-कदम
हरदम,
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
चाहो, न चाहो, गुरु जी चाहे, हमें तुम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
हरदम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
तितली को पर की नहीं उतनी जरूरत
हमें आपकी है गुरु जी जितनी जरूरत
दर-कदम
हरदम,
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
चाहो, न चाहो, गुरु जी चाहे, हमें तुम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
हरदम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
चाँद-चकोरे को न उतना जरूरी
हाथ तेरा सर पे मेरे, जितना जरूरी
दर-कदम
हरदम,
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
चाहो, न चाहो, गुरु जी चाहे, हमें तुम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
हरदम
जी-जान से भी ज्यादा, हैं चाहते तुम्हें हम
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
होती ‘जी’ गुरु जी बहुत जगह,
माँ की तरह
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