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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 806

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 806

गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।स्थापना।।

सागर क्षीर,
भेंटूँ नीर,
हेत मनस् नव-जात समां,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।जलं।।

विनय समेत,
मलयज भेंट,
हाथ लगे जा ‘कि आसमां,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।चन्दनं।।

भेंटूँ थाल,
धाँ इक शाल,
देखे मुख यमराज गुमां,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।अक्षतं।।

दिव्य अमूल,
भेंटूँ फूल,
विघटे रात’कि पाप अमा,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।पुष्पं।।

भेंट विमान,
घृत पकवान,
सकूँ सातिशय पुण्य कमा,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।नैवेद्यं।।

ज्योत सदीव,
भेंट प्रदीव,
आन विराजें कण्ठ ‘कि माँ,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।दीपं।।

उपवन नन्द,
भेंट सुगंध,
ढ़ोलूँ व्यर्थ न पुण्य जमा,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।धूपं।।

भेंट पिटार,
फल रसदार,
रीझ चले झट मुक्ति रमा,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।फलं।।

भेंट परात,
गुल फल आद,
लागूँ पार न अर अरमाँ,
नमो-नमः नमो-नमः
अवतार क्षमा
गुरु पूर्ण माँ,
नमो-नमः नमो-नमः ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
बस हों शिशु प्यासे,
गुरु पिलाते अमृत माँ से

जयमाला

सूरज की पहली किरण हैं
श्री गुरुदेव जी,
देहरी दीप रतन हैं

अँधेरे चलते बनो
अय ! सुनो
स्याही मनसूबे तुम्हारे, अब सिर्फ़ सुपन हैं
श्री गुरुदेव जी,
देहरी दीप रतन हैं

अब न कटेंगीं गैय्यां,
दिन में तुम्हें दिखेंगीं तरैय्यां
काले कारनामे तुम्हारे, अब सिर्फ़ सुपन हैं
अँधेरे चलते बनो
अय ! सुनो
स्याही मनसूबे तुम्हारे, अब सिर्फ़ सुपन हैं
श्री गुरुदेव जी,
देहरी दीप रतन हैं

छटेंगीं गम कीं कालीं बदलियां
न होगीं हवाले हवा नन्हीं कलियां
न रहेगी पलक भी निशा
न करेंगे बच्चे अब नशा
श्री गुरुदेव जी जो हो चले खिवैय्या,
डूबती भी, न डूबने पायेगी नैय्या,

कृपा श्री गुरु देव जी बरगदी छैय्यां
दिन में तुम्हें दिखेंगीं तरैय्यां
काले कारनामे तुम्हारे, अब सिर्फ़ सुपन हैं
अँधेरे चलते बनो
अय ! सुनो
स्याही मनसूबे तुम्हारे, अब सिर्फ़ सुपन हैं
श्री गुरुदेव जी,
देहरी दीप रतन हैं

सूरज की पहली किरण हैं
श्री गुरुदेव जी,
देहरी दीप रतन हैं

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
संगाती,
गुरु जीवन की गो-धूलि-बेला के साथी

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