- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 765
आ किया तुमने बड़ा अहसान है
मेरी जिन्दगी में,
तेरी बन्दगी में,
जैसे ‘कि, आया झुकता आसमान है
वैसे ही जाये झुकता यही अरमान है।।स्थापना।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
दृ्ग्-जल अर्पण,
अय ! तारण तरण ।।जलं।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
चन्दन अर्पण,
अय ! दुर्गत हरण ।।चन्दनं।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
अक्षत अर्पण,
अय ! निस्पृह शरण ।।अक्षतं।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
दिव-गुल अर्पण,
अय ! तरि वैतरण ।।पुष्पं।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
अरु-चरु अर्पण,
अय ! धवलाचरण ।।नैवेद्यं।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
दीपक अर्पण,
अय ! समकित करण ।।दीपं।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
सुगंध अर्पण,
अय ! निधि निज रमन ।।धूपं।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
श्री-फल अर्पण,
अय ! इक-गृह-अरण ।।फलं।।
साथ श्रद्धा सुमन,
आपके चरणों में,
जल-फल अर्पण,
अय ! सुर’भि’ निर्झरन ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
भर दें
गुरु मरहम !
अन्छुये वक्त जखम
जयमाला
तरु सघन छाँवों में,
गुरु भगवन् पाँवों में,
जिन्हें पनाह मिल जाती
पतंग उनकी उड़ जाती
बातों-बातों में
गुरु भगवन् पाँवों में,
जिन्हें पनाह मिल जाती
पतंग उनकी उड़ जाती
बजाने लगती दश-दश घड़ी
हाथ लग चलती जादुई छड़ी
क्या रात-रात में,
‘जि बात-बात में,
बन जाती बिगड़ी
तरु सघन छाँवों में,
गुरु भगवन् पाँवों में,
जिन्हें पनाह मिल जाती
पतंग उनकी उड़ जाती
बातों-बातों में
गुरु भगवन् पाँवों में,
जिन्हें पनाह मिल जाती
पतंग उनकी उड़ जाती
दयाल-धन ! हाथों से,
गुरु भगवन् आंखों से,
जिनको राह मिल जाती
पतंग उनकी उड़ जाती
दीवाली लगती हाथ फुल झड़ी
पिचकारी, लगती हाथ रंग-भरी
क्या रात-रात में,
‘जि बात-बात में,
बन जाती जिन्दड़ी
बन जाती बिगड़ी
दयाल-धन ! हाथों से,
गुरु भगवन् आंखों से,
जिनको राह मिल जाती
पतंग उनकी उड़ जाती
तरु सघन छाँवों में,
गुरु भगवन् पाँवों में,
जिन्हें पनाह मिल जाती
पतंग उनकी उड़ जाती
बातों-बातों में
गुरु भगवन् पाँवों में,
जिन्हें पनाह मिल जाती
पतंग उनकी उड़ जाती
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
लो लगा मुझे भी पीछे,
सुना बड़े दुखड़े नीचे
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