परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 77
आप क्या जीवन में आये ।
आये झोली चाँद सितारे ।।
लागी मेरी नाव किनारे ।
रंग नव जीवन में छाये ।।
आप क्या जीवन में आये ।
बीच दो दिन के, एक आने लगी निशा ।
निशाँ पैरों के क्या पाये, पाई मैनें नई दिशा ।।
।। स्थापना।।
भरके जल से कलशे लाया ।
तुम दर्शन समता निध पाया ।।
आकुलता दिन-अंतिम आया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ।।जलं।।
भरके चन्दन कलशे लाया ।
तुम दर्शन सुख अपूर्व पाया ।।
पाप निधत्त-निकाच नशाया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ।।चन्दनं।।
शालि सुगंधित अक्षत लाया ।
तुम दर्शन दृग् तीजा पाया ।।
छू मन्तर, मन्तर दुठ माया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ।।अक्षतं।।
गुल पिटार वन नन्दन लाया ।
तुम दर्शन वैभव निज पाया ।।
मन विकार का हुआ सफाया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ।।पुष्पं।।
घृत निर्मित चरु चारु चढ़ाया ।
तुम दर्शन विशुद्धि अर पाया ।।
भाव प्रमाद किनार लगाया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ।।नेवैद्यं।।
ज्योत दीप-मण-मोती लाया ।
तुम दर्शन सम दर्शन पाया ।।
मिथ्यातम का हुआ सफाया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ।।दीप॑।।
रजत-स्वर्ण घट सुगंध लाया ।
तुम दर्शन मत हंसी पाया ।।
टेव वानरी यम घर आया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ।।धूपं।।
भाँत भाँत फल परात लाया ।
तुम दर्शन सर भार गवाया ।।
उत्पथ बढ़ा कदम लौटाया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ।।फल॑।।
दिव्य द्रव्य जल फलाद लाया ।
तुम दर्शन मनचाहा पाया ।।
भाव निराकुल हृदय समाया ।
आप क्या जीवन में आये ।।
आये झोली चाँद सितारे ।
लागी मेरी नाव किनारे ।।
रंग नव जीवन में छाये ।
आप क्या जीवन में आये ॥अर्घं।।
“दोहा”
दीन बन्धु ! शिश वैद्य ! जे,
शरणागत प्रतिपाल ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें,
नमन नन्त तिहुकाल ॥
“जयमाला”
चिन्मय चिदानन्द रस भीगे,
रसिया ओ ।
दुग्ध धवल कीरति सुन्दरि मन,
वसिआ ओ ॥
स्वीकृत तप-व्रत से सनेह,
करने वाले ।
निकले वन, परिणाम श्वेत करने,
काले ।।
ओ अध्यात्म सरोवर राज,
हंस नामी ।
प्रवचन मात अंक निवसक !
अन्तर्-यामी ॥
शिशु प्रतिभा प्रकाशि भव,
जलधि जहाज अहो ।
अपर तीर्थ संरक्षक ! कलि,
व्रत ताज विभो ॥
देही तदपि विदेही,
ओ सम रस सानी ।
शील रत्न ! चारित चक्री !
ज्ञानी ! ध्यानी ।।
अहो भावि भरतार अपर,
शिव राधा के ।
मूकमाटी कृति-कार,
नुवादक गाथा के ॥
ओ गौवंश सुरक्षक,
दीनन हितकारी ।
विघ्न विनाशक ! विध्वंसक-अघ !
दुखहारी ॥
ओ आदर्श पथिक शिव !
शिव पथिकन लाठी ।
प्रशम ! सत्य ! शिव ! सुन्दर ,
जैनागम पाठी ॥
ओ समताधन धारक,
सन्त महन्त महा ।
गुरु विद्या गुण नंत,
दीखता अन्त कहाँ ॥
तदपि आप गुण पर्श रत्न,
त्रय दें हमको ।
दें बल, चारों खाने,
चित्त करें यम को।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
जिसे उठाया आपने,
गुरु वर अपनी गोद ।
मृत्यु साथ उसके कभी,
कर न सके विनोद ॥
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