परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 76
शबरी झुक झूम रही ।
मीरा रुक घूम रही ।।
मन तुम्हारे न भाता हूँ ।
क्या मैं परायों में आता हूँ ।।
फिर मुझे भुलाया क्यूँ है ।
रह-रह के रुलाया क्यूँ है ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।स्थापना।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूँ नीर कंचन ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।जलं।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूँ मलय चन्दन ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।चन्दनं।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूँ शालि धाँ कण ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।अक्षतं।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूँ श्रद्धा सुमन ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।पुष्पं।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूँ भोग छप्पन ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।नेवैद्यं।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूंँ दीवा रतन ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।दीप॑।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूँ दश गंध अन ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।धूपं।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूँ फल नन्द वन ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।फल॑।।
आया हूँ भींगे नयन ।
लाया हूँ द्रव्य अनगण ।।
मुझे रख लो चरण में यहीं कहीं ।
जरा भी मेरी, क्या तुझे फिकर नहीं ।।
शबरी झुक झूम रही ।।अर्घं।।
“दोहा”
दय निर्झर झर-झर-झरे,
जिनसे आठों याम ।
श्री गुरु विद्या सिन्धु वे,
सविनय तिन्हें प्रणाम ॥
“जयमाला”
सत् शिव सुन्दर,
ज्ञान समुन्दर,
जय गुरुवर, जय विद्या सागर ।।
पाप निकन्दन।
श्री मत नन्दन ।।
छव चन्दन, जय विद्या सागर ।।
सत् शिव सुन्दर,
ज्ञान समुन्दर,
जय गुरुवर, जय विद्या सागर ।।
दया क्षमा बुत ।
मल्लप्पा सुत ।।
भा अद्भुत, जय विद्या सागर ।।
सत् शिव सुन्दर,
ज्ञान समुन्दर,
जय गुरुवर, जय विद्या सागर ।।
कुन्द-कुन्द शिख ।
दरद-मन्द इक ।
इक माँ…लिख, जय विद्या सागर ॥
सत् शिव सुन्दर,
ज्ञान समुन्दर,
जय गुरुवर, जय विद्या सागर ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
“दोहा”
अपने चरणों से मुझे,
कभी न करना दूर ।
मछली मैं तुम नीर हो,
पंकज मैं, तुम सूर ।।
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