- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 745
हाईकू
ले लो शरण में,
मुझे जगह दे दो चरण में ।।स्थापना।।
रहा उलझ,
अपना लो, जल,
‘कि जाऊँ सुलझ ।।जलं।।
पनीले नैन,
अपना लो, चन्दन,
‘कि पाऊँ चैन ।।चन्दनं।।
बजे द्वादश,
अपना लो, धाँ,
बजें, ‘कि दश-दश ।।अक्षतं।।
बिगड़े काम,
अपना लो, पुष्प,
‘कि पाऊँ मुकाम ।।पुष्पं।।
रिझायें दौड़,
अपना लो, नैवेद्य,
‘कि पाऊँ ठौर ।।नैवेद्यं।।
अँधेरी रात,
अपना लो, दीप,
‘कि देखूँ प्रभात ।।दीपं।।
भूमि दरार,
अपना लो, धूप,
‘कि रीझे फुहार ।।धूपं।।
बीच भँवर,
अपना लो, श्री फल,
‘कि जाऊँ तर ।।फलं।।
गर्दिश तारे,
अपना लो, अर्घ,
‘कि लगूँ किनारे ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
गुरु चलाते अँगुली थाम,
माँ के ही दूजे नाम
जयमाला
मैं माटी,
अय ! मेरे कुम्हार,
है मिलने बेकरार
मेरा हिवरा
आपसे,
जैसे बावरा भँवरा,
फूल से एक बार,
रहे मिलने बेकरार
चाँद से चकोर,
जैसे बादलों से मोर
रहे मिलने बेकरार
उसी भाँति
मैं माटी,
अय ! मेरे कुम्हार,
दिन-दीप से कमल
जैसे सीप स्वाति जल
रहे मिलने बेकरार
उसी भाँति
मैं माटी,
अय ! मेरे कुम्हार,
है मिलने बेकरार
मेरा हिवरा
आपसे,
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
जिनके गुरु रखवारे,
होते वे किस्मत वाले
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