- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 738
हाईकू
देते हैं चाँद तारे छुवा,
‘गुरु जी’ पिटारे दुआ ।।स्थापना।।
धनी निर्धन तुम्हें एक से,
भेंटूँ जल कलशे ।।जलं।।
तुम्हें निर्धन एक ‘गिर-धन,
सो भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।
पैसे वाले-से, भाग के मारे तुम्हें,
सो भेंटूँ धाँ मैं ।।अक्षतं।।
तुम्हें रईस सा सईस,
सो भेंटूँ पुष्प शिरीष ।।पुष्पं।।
तुम्हें निर्धना एक धनवाँ,
भेंटूँ ‘सो ला’ पकवाँ ।।नैवेद्यं।।
जैसा अमीर तुम्हें वैसा गरीब,
सो भेंटूँ दीव ।।दीपं।।
तुम्हें सुखिया, दुखिया एक रूप,
सो भेंटूँ धूप ।।धूप।।
सेठ सा तुम्हें फटे हाल,
सो भेंटूँ श्री-फल थाल ।।फलं।।
कुबेर भाँत तुम्हें तंग-हाथ,
सो भेंटूँ जलाद ।।अर्घं।।
हाईकू
उत्पथ पद,
पड़ने न दें,
‘गुरु’
गलत लत
जयमाला
जो चित् चुराना है,
तो कोई सीखे तुमसे
चाँद पूनम वाला,
मिलता-जुलता दीखे तुमसे
तुम बड़े लाजवाब हो
बीच गुलशन गुल गुलाब हो
चन्दन जैसा रूप तुम्हारा
आँख खोलते ज्यों ही तुम,
जग में होता उजियारा
चुभते नहीं आँखों के लिये,
ऐसे आफताब हो
तुम बड़े लाजवाब हो
बीच गुलशन गुल गुलाब हो
गुरु कुन्द-कुन्द सा चरित तुम्हारा
होठ खोलते ज्यों ही तुम,
जग का खोता अँधियारा
कोई दाग नहीं दामन में,
तुम ऐसे मेहताब हो
तुम बड़े लाजवाब हो
बीच गुलशन गुल गुलाब हो
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
यही आरजू,
सबके दुख-दर्द ‘कि हो जायें छू
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