- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 718
=हाईकू=
खबर,
रक्खा करते नजर,
माँ सी गुरुवर ।।स्थापना।।
गुरु ‘जी’ चुरा पाये तेरा,
तोहफा दृग्-जल मेरा ।।जलं।।
तुझसे लागी लगन मोरी,
भेंटूँ गंध कटोरी ।।चन्दनं।।
तेरा नाम ले न थके जुबाँ मेरी,
भेंटूँ धाँ ढेरी ।।अक्षतं।।
भेंटूँ कुसुम,
भक्त मैं तेरा, मेरे भगवन् तुम ।।पुष्पं।।
भेंटूँ नेवज,
जुड़ चला तुमसे रिश्ता सहज ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ ज्योति,
न आज की तेरी मेरी पुरानी प्रीति ।।दीपं।।
लागी लगन अंधी तुझसे,
भेंटूँ सुगंधी तुझे ।।धूपं।।
तुझसे लागी लगन म्हारी,
भेंटूँ फल-पिटारी ।।फलं।।
मेरे गरब !
ए मेरे-रब !
भेंटूँ द्रव सरब ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
न्यारे,
‘श्री गुरु’
चमकते सबसे तेज सितारे
।।जयमाला।।
आप मेरे उन अपनों में आते हैं
जो न आते तो आँसु चले आते हैं
दिल की धड़कन थमने को कहने लगे
नाड़ी फड़कन ठहरने को कहने लगे
उधर आप जो नजर न उठाते हैं
तो आँसु चले आते हैं
आप मेरे उन अपनों में आते हैं
जो न आते तो आँसु चले आते हैं
साँसों की सरगम बेसुरी सी होने लगे
जिस्मो-जाँ संगम दूरिंयाँ बोने लगे
रख मुझे नजर, जो आप न मुस्कुराते हैं
तो आँसु चले आते हैं
आप मेरे उन अपनों में आते हैं
जो न आते तो आँसु चले आते हैं
पलकों की थिरकन पन चंचल खोने लगे
रोमावलि पुलकन धूमिल सी होने लगे
मुस्कुरा मुझसे, जो आप न बतियाते हैं
तो आँसु चले आते हैं
आप मेरे उन अपनों में आते हैं
जो न आते तो आँसु चले आते हैं
दिल की धड़कन थमने को कहने लगे
नाड़ी फड़कन ठहरने को कहने लगे
उधर आप जो नजर न उठाते हैं
तो आँसु चले आते हैं
आप मेरे उन अपनों में आते हैं
जो न आते तो आँसु चले आते हैं
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
होता है प्रभु-मिलन,
छूते ही श्री गुरु-चरण
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