- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 715
=हाईकू=
गुरु उतने खासमखास,
लेनी जितनी श्वास ।।स्थापना।।
भेंटूँ निर्मल नीर,
दृग्-नीर, धीर-वीर-गंभीर ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन धार,
निर्जन वन क्रन्दनहार ।।चन्दनं।।
भेंटूँ अक्षत धान,
करुणा-दया-क्षमा निधान ।।अक्षतं।।
भेंटूँ सुमन थाल,
कलि गोपाल ! मति-मराल ।।पुष्पं।।
भेंटूँ छप्पन भोग,
‘दर्शन’ मणि काञ्चन जोग ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ अखण्ड ज्योत,
कर्तार जिन-मत उद्योत ।।दीपं।।
भेंटूँ अनूप धूप,
चिच्चिदानंद ! चैत्य चिद्रूप ।।धूपं।।
भेंटूँ श्री फल और,
साध सहज-दृग् शिर मौर ।।फलं।।
भेंटूँ अरघ दूज,
एक मत भू-सुरग पूज ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
था गुरु जी को न पड़ा-सिखाना,
पी गुस्से को जाना
।।जयमाला।।
गुरुदेव की उतारते आ आरती,
गुरुदेव की
गुरुदेव ही, रथ भुक्ति-मुक्ति सारथी,
गुरुदेव ही
गुरुदेव की उतारते आ आरती,
गुरुदेव की
यही तो, थमा देते खुशिंयों के आँसू
यही तो चुरा लेते अंखिंयों से आँसू
गुरुदेव ही, जानें कला उस पार की,
गुरुदेव ही
गुरुदेव ही, रथ भुक्ति-मुक्ति सारथी,
गुरुदेव ही
यही तो, छुवा देते हैं, आसमाँ को
यही तो, दुआ देते हैं, पास माँ जो
गुरुदेव ही, श्रुत-विश्रुत माँ भारती,
गुरुदेव ही
गुरुदेव ही, रथ भुक्ति-मुक्ति सारथी,
गुरुदेव ही
यही जगमगा देते, किस्मत सितारे
यही तो, लगा देते किश्ती किनारे
गुरुदेव ही, रखते हैं नज़र पारखी,
गुरुदेव ही
गुरुदेव ही, रथ भुक्ति-मुक्ति सारथी,
गुरुदेव ही
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
काटें न,
‘बात’
‘अहिंसक होने से’
गुरु दें बना
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