- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 714
=हाईकू=
उठ न रहा था पलड़ा,
‘जी ‘गुरु’ सो नाम पड़ा ।।स्थापना।।
ए ! सुमेर-वत् चारित अविचल,
भेंटूँ दृग् जल ।।जलं।।
ए ! पाँच पाप हिंसादि निकंदन,
भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।
ए ! दया क्षमा करुणा अवतार !
भेंटूँ धाँ न्यार ।।अक्षतं।।
ए ! अभिजित रण-चितवन !
मैं भेंटूँ सुमन ।।पुष्पं।।
ए ! चौ कषाय क्रोधादिक भंजन !
भेंटूँ व्यंजन ।।नैवेद्यं।।
ए ! समरस विरदावली-गाली !
भेंटूँ दीवाली ।।दीपं।।
ए ! विरहित छल-छिद्र ठगी !
मैं भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।
ए ! विरहित गफलत-गहल !
भेंटूँ श्री फल ।।फलं।।
ए ! अवहित मन-वाक्-काय वर्ग !
भिटाऊँ अर्घ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
न छोड़ें मौके, पोंछने के दुखिया-अश्रु
श्री गुरु
।। जयमाला ।।
साधु जीवन अपने जैसा ।
न बोले सिर चढ़कर पैसा ।।
बिछाने धरती मनमानी ।
चादरा गगन आसमानी ।।
हाथ कच लोंच स्वाभिमानी ।
नाम ही है पातर पाणी ।।
भांत पहरी सजग हमेशा ।
न बोले सिर चढ़ के पैसा ।
साधु जीवन अपने जैसा ।।१।।
क्रोध गुस्सा पीना आता ।
गम्म खाने मन ललचाता ।।
गीत नवकार खूब भाता ।
जोड़ना शिव राधा नाता ।।
राग टूटा, छूटा द्वेषा ।
भांत पहरी सजग हमेशा ।।
न बोले सिर चढ़ के पैसा ।
साधु जीवन अपने जैसा ।।२।।
पोर निज अंगुलियाँ सुमरनी ।
नापते पांव पांव धरणी ।।
व्यथा मण, कान्ति तन सुवरणी ।
अगम महिमा न जाय वरणी ।।
किसी का वैभव ना ऐसा ।
भांत पहरी सजग हमेशा ।।
न बोले सिर चढ़ के पैसा ।
साधु जीवन अपने जैसा ।।३।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
प्रभु गवाह,
चश्मा पाया न कभी, गुरु पनाह
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