- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 708
=हाईकू=
पाये मेरा भी आँगन,
कभी तेरा पड़गाहन ।।स्थापना।।
दृग्-जल भेंटूँ,
‘कि भ्रमण जामन-मरण मेंटूँ ।।जलं।।
चन्दन भेंटूँ,
‘कि जन्म जन्मातर आतप मेंटूँ ।।चन्दनं।।
अक्षत भेंटूँ,
‘कि पद जेते क्षत-विक्षत मेंटूँ ।।अक्षतं।।
पुष्प भेंटूँ,
‘कि सिर-चढ़ बोले ये मन्मथ मेंटूँ ।।पुष्पं।।
नेवज भेंटूँ,
‘कि जग भखना ये रोग क्षुध् मेंटूँ ।।नैवेद्यं।।
दीप भेंटूँ,
‘कि महा-मोह रूप ये अंधेरा मेंटूँ ।।दीपं।।
धूप भेंटूँ,
‘कि प्रद-कष्ट ये अष्ट करम मेंटूँ ।।धूपं।।
श्री फल भेंटूँ,
‘कि नरकादि सात-पृथ्वियाँ मेंटूँ ।।फलं।।
अर्घ भेंटूँ,
‘कि मन वाक् काय रूप त्रिवर्ग मेंटूँ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
न बना रक्खें प्रश्न,
दें बना गुरु जी मृत्यु जश्न
।। जयमाला।।
कुछ न कुछ है जरूर खास
आपके पास
तभी तो आ मनवा दौड़ दौड़ जाता है
कहीं भी आपको न छोड़ और जाता है
आपके पास
कुछ न कुछ है जरूर खास
आपके पास
तभी तो नजरें हटाये भी न हटती हैं
मुड़-मुड़ के पलकें झपाये बिना निरखती हैं
आपके पास
कुछ न कुछ है जरूर खास
आपके पास
तभी तो आ मनवा दौड़ दौड़ जाता है
कहीं भी आपको न छोड़ और जाता है
आपके पास
कुछ न कुछ है जरूर खास
आपके पास
तभी तो धड़कन ठहरती, न थकती है
जाप आप नाम का करती हरखती है
आपके पास
कुछ न कुछ है जरूर खास
आपके पास
तभी तो आ मनवा दौड़ दौड़ जाता है
कहीं भी आपको न छोड़ और जाता है
आपके पास
कुछ न कुछ है जरूर खास
आपके पास
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
अपनी राह, ली गुनाह,
‘रे वाह…’गुरु पनाह’
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