- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 702
=हाईकू=
कृपया गुरु जी लीजिये निहार,
मेरा भी द्वार ।।स्थापना।।
पा तुम्हें मेरी कुटिया तरी,
भेंटूँ जल गगरी ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन,
आ आपने की मेरी कुटिया धन ।।चन्दनं।।
भेंटूँ धाँ ढ़ेरी,
धन्य कुटिया मेरी,
पा कृपा तेरी ।।अक्षतं।।
भेंटूँ कुसुम,
झूमे कुटिया मेरी, आये क्या तुम ।।पुष्पं।।
मेरी कुटिया थिरके,
‘पाय तोय’ सो चरु रखे ।।नैवेद्यं।।
तू आया…
आई सुर्ख़ियों में कुटिया,
सो भेंट ‘दिया’ ।।दीपं।।
गगन मेरी कुटिया की पतंग,
भेंटूँ सुगंध ।।धूपं।।
भेंटूँ श्रीफल,
झले कुटिया मेरी खुशी-दृग् जल ।।फलं।।
भेंटूँ अर्घ
पा तुम्हें मेरी कुटिया ने पाया स्वर्ग ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
करते यूँ ही न वादे हो
‘जि तुम सीधे-साधे हो
।। जयमाला।।
जानें चलाना, पकड़ के अंगुली
माँ या गुरु जी
शुक्र-गुजार हूँ
मैं इनका कर्ज-दार हूँ
जानें पिलाना, भर-भर अञ्जुली
जानें चलाना, पकड़ के अंगुली
माँ या गुरु जी
शुक्र-गुजार हूँ
मैं इनका कर्ज-दार हूँ
जानें लिखाना, पकड़ के अंगुली
जानें चलाना, पकड़ के अंगुली
माँ या गुरु जी
शुक्र-गुजार हूँ
मैं इनका कर्ज-दार हूँ
जानें उठाना, कर-कर अंगुली
जानें चलाना, पकड़ के अंगुली
माँ या गुरु जी
शुक्र-गुजार हूँ
मैं इनका कर्ज-दार हूँ
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
है तकदीर साथ मेरी,
हाथ जो तस्वीर तेरी
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