- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 699
“हाईक”
जग वाले तो समझे,
समझूँ मैं,
‘जि आ जाओ ना ।।स्थापना।।
आये कलश लिये जल,
सुलझे ‘कि अटकल ।।जलं।।
आये कलश ले चन्दन,
सुलझे ‘कि उलझन ।।चन्दनं।।
आये परात ले अक्षत,
सुलझे ‘कि व्यूह-विपत् ।।अक्षतं।।
आये परात ले सुमन,
सुलझे ‘कि प्रश्न-मन ।।पुष्पं।।
आये परात ले व्यज्जन,
सुलझे ‘कि अड़चन ।।नैवेद्यं।।
आये प्रदीव ले रतन,
सुलझे ‘कि अनबन ।।दीपं।।
आये धूप ले अनुपम,
सुलझे ‘कि गुत्थी गम ।।धूपं।।
आये थाल ले श्री फल,
सुलझे ‘कि पहेली कल ।।फलं।।
आये थाल ले अरघ,
सुलझे ‘कि मनवा मृग ।।अर्घ्यं।।
“हाईकू”
फीका पारस पत्थर,
स्वयं-सा जो लें आप कर
।। जयमाला।।
दीवाली निशि, दिन होली कर देते हो
तुम
माँगने से पहले झोली भर देते हो
कितने अच्छे हो
तुम
कितने अच्छे हो
न सिर्फ कसमें खाते हो
दिल के सच्चे हो
तुम कितने अच्छे हो
कर करिश्मे भी दिखाते हो
न सिर्फ कसमें खाते हो
दीवाली निशि, दिन होली कर देते हो
तुम
माँगने से पहले झोली भर देते हो
कितने अच्छे हो
तुम
कितने अच्छे हो
न सिर्फ बातें बनाते हो
दिल के सच्चे हो
तुम कितने अच्छे हो
‘जि निभाते भी वादे हो
न सिर्फ बातें बनाते हो
दीवाली निशि, दिन होली कर देते हो
तुम
माँगने से पहले झोली भर देते हो
कितने अच्छे हो
तुम
कितने अच्छे हो
न सिर्फ रस्ते दिखाते हो
दिल के सच्चे हो,
तुम कितने अच्छे हो
‘जि रिश्ते भी निभाते हो
न सिर्फ रस्ते दिखाते हो
दीवाली निशि, दिन होली कर देते हो
तुम
माँगने से पहले झोली भर देते हो
कितने अच्छे हो
तुम
कितने अच्छे हो
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
“हाईकू”
गुरु ने बाग-डोर क्या सँभाली,
लो मनी दिवाली
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