- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 694
=हाईकू=
कुछ भी नहीं मैं तेरा,
सब कुछ तुहीं पै मेरा ।।स्थापना।।
भेंटूँ दृग् जल,
न उठाऊँ कॉलर, पानी पे लिख ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन,
न मचाऊँ पुन: ‘ कि रुदन-वन ।।चन्दनं।।
धाँ भेंटूँ,
पीस के रात-रात ‘कि न पारे समेटूँ ।।अक्षतं।।
भेंटूँ प्रसून,
न रक्खे जाऊँ अंक पहले शून ।।पुष्पं।।
मुट्ठी मुटकी न निकालता फिरूँ,
भिटाऊं चरू ।।नैवेद्यं।।
दीप चढ़ाऊँ,
सीप मैं,
पल-स्वाती, न अलसाऊँ ।।दीपं।।
हवा कपूर न जोड़ दूँ संबंध,
भेंटूँ सुगंध ।।धूपं।।
भेंटूँ फल,
न निकल चलें पल,
मथते जल ।।फलं।।
भेंटूँ अरघ,
न हो कोल्हू बैल सा नापना जग ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
छुये चैन,
चित् बेचैन,
गुरु मीठे सुन दो वैन
।। जयमाला।।
क्या तुझे मिल सका है
अय ! चाँद
चाँद तुझसे भी शीतल
मुझे मिल चला है
तिल भर भी दाग जिसमें नहीं
शान्त सर-मानस विरला है
है उठता कभी झाग जिसमें नहीं
माथ गिर उदय भान निकला है
तिल तुस भी आग जिसमें नहीं
तिल भर भी दाग जिसमें नहीं
शान्त सर-मानस विरला है
है उठता कभी झाग जिसमें नहीं
अंग अंग चन्दन श्रृंखला है
लिपटे पै नाग जिसमें नहीं
तिल भर भी दाग जिसमें नहीं
शान्त सर-मानस विरला है
है उठता कभी झाग जिसमें नहीं
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
दे तोड़ मौन,
‘दे बता’
बड़ा गुरु से और कौन
Sharing is caring!