- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 691
*हाईकू*
कभी ऐसा हो,
हुआ, आप-आहार कहाँ,
पता हो ।।स्थापना।।
लिये सजल आँख मैं,
स्वीकारिये,
तारिये हमें ।।जलं।।
लिये चन्दन पात्र में,
स्वीकारिये,
तारिये हमें ।।चन्दनं।।
लिये अक्षत साथ में,
स्वीकारिये,
तारिये हमें ।।अक्षतं।।
लिये द्यु-जल-जात मैं,
स्वीकारिये,
तारिये हमें ।।पुष्पं।।
लिये दृग्-भात ‘भात’ मैं,
स्वीकारिये ,
तारिये हमें ।।नैवेद्यं।।
लिये गो घृत बाति मैं,
स्वीकारिये,
तारिये हमें ।।दीपं।।
लिये सुगंध ख्यात मैं
स्वीकारिये,
तारिये हमें ।।धूपं।।
लिये श्री फल हाथ में,
स्वीकारिये,
तारिये हमें ।।फलं।।
लिये दृग् जल आद मैं
स्वीकारिये
तारिये हमें ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
फिरके तू तू-मैं मैं,
‘गुरु मति’
न कभी पड़ती
जयमाला
ता रारा रारा रुम
शिवम् सत्यम् सुन्दरम्
पूनम उजियारे तुम
हो सबसे प्यारे तुम
तितलियों का, गुलों का
यही कहना बुलबुलों का
पल पलक
पाते ही आप झलक
सितम, तम,मातम, गम
जा होते दूर कहीं गुम
जन्नत नजारे तुम
जमीं चाँद-सितारे तुम
पूनम उजियारे तुम
हो सबसे प्यारे तुम
बागों का कलियों का
जन्नत की गलियों का
बादलों का मोरों का
यही कहना चित् चोरों का
पल पलक
पाते ही आप झलक
सितम, तम,मातम, गम
जा होते दूर कहीं गुम
चल तीरथ सारे तुम
जग भर से न्यारे तुम
पूनम उजियारे तुम
हो सबसे प्यारे तुम
जन्नत नजारे तुम
जमीं चाँद-सितारे तुम
ता रारा रारा रुम
शिवम् सत्यम् सुन्दरम्
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
*हाईकू*
दूरी नज़र की,
‘रखना भले’
न ‘कि जिगर की
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